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Thursday, 9 June 2011
Cow urine for urinary disease

मूत्र रोग में गोमूत्र का उपयोग

वृद्धावस्था में मूत्रत्याग के पश्चात् भी मूत्र की एक-आध बूंद बाद में टपकती है। इसके कईं कारण हो सकते हैं जैसे प्रोस्ट्रेट ग्रन्थि का बढना आदि। निम्नलिखित योग इस स्थिति में उपयोगी पाया गया-

शुण्ठी चूर्ण 20 ग्राम

नागरमोथा चूर्ण 20 ग्राम

पित्तपापडा चूर्ण 20 ग्राम

वासा पत्ते(ताजे) 250 ग्राम

गिलोय ताजी  150 ग्राम

वासा(साधारण भाषा में बांसा) के ताजे पत्ते (लगभग 250 ग्राम) लेकर उनको कूटकर मिक्सी में गोमूत्र लगभग 250 मि.लि. के साथ मिश्रित किया गया और फिर उस को छलनी में दबाकर रस अलग कर लिया गया। इस रस में और गोमूत्र लगभग 250 ग्राम मिलाकर गिलोय के छोटे-छोटे टुकडों के साथ, जिन्हें पहले कूट लिया गया था, मिश्रित किया गया और फिर मिश्रण से रस को अलग कर लिया गया। ठोस भाग में पुनः जल मिलाकर उसको मिश्रित किया गया और रस को अलग कर लिया गया। सारे रस को शुण्ठी, नागरमोथा व पित्तपापडा के चूर्ण में मिश्रित कर दिया गया और तेज धूप में सुखा लिया गया। इस चूर्ण को खाने पर जीभ पर थोडा कटान सा होता है। इस चूर्ण के सेवन से मूत्र का टपकना बन्द हुआ है। गोमूत्र जिस गौ से प्राप्त किया गया था, वह सडक में घूमने वाली गौ ही थी, कोई विशेष गौ नहीं।


Posted by puraana at 12:34 AM EDT

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