PURAANIC SUBJECT INDEX पुराण विषय अनुक्रमणिका (Suvaha - Hlaadini) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
|
|
Puraanic contexts of words like Soorya / sun, Srishti / manifestation etc. are given here. Comments on Srishti/creation/manifestation सूर्पारक वामन ९०.२५(सूर्पारक में विष्णु का चतुर्बाहु नाम), द्र. शूर्पारक सूर्म्या भागवत ६.१८(अनुह्राद - पत्नी, बाष्कल व महिषासुर की माता),
सूर्य अग्नि
२१.१२(सूर्य पूजा विधि),
७३(सूर्य पूजा विधि),
९१.१५(सूर्य के बीज मन्त्रों
क्षौं कौं
का उल्लेख),
९९(सूर्य प्रतिमा प्रतिष्ठा विधि),
१२०.२१(सूर्य
के रथ का वर्णन),
१२५.३७(सूर्य
चक्र से युद्ध फल विचार),
१४८(संग्राम
जय हेतु सूर्य पूजा का वर्णन),
१४८(दिशाओं में सूर्य के नाम),
२७३(सूर्य
वंश का वर्णन),
२७३(दिशाओं में सूर्य के नाम),
३०१.१२(सूर्यार्चन विधि),
कूर्म १४२,
१.४३(मास
अनुसार सूर्य के नाम,
वर्ण व पोषक रश्मियों की संख्या),
१.४३.२(सूर्य
की ७ रश्मियों के नाम व कार्य),
२.१८.३४(प्रातःसन्ध्या पश्चात् सूर्यार्चन विधि),
गरुड १.१७(सूर्य मण्डल पूजा),
१.२३(सूर्य रूपी शिव अर्चना विधि),
१.३९(सूर्य
परिवार सहित सूर्य पूजा विधि),
१.५८(सूर्य
के रथ का वर्णन),
१.१३८(सूर्य वंश का वर्णन),
गर्ग
७.२.२२(सूर्य द्वारा प्रद्युम्न को
गदा भेंट),
देवीभागवत ८१४,
८.१५(सूर्य रथ के मार्ग व गति का
वर्णन),
८.१५(सूर्य
की गति का वर्णन),
नारद १.५६.२५८(सूर्य संक्रान्ति में सूर्य की सुषुप्ति आदि
अवस्था के अनुसार फल),
१.६५.२६(सूर्य की १२ कलाओं के नाम),
१.६७.१००(सूर्य - पार्षद चूडांशु),
१.११६.४५(पौष शुक्ल षष्ठी को सूर्य के प्रादुर्भाव का उल्लेख),
पद्म १.८.३६(संज्ञा
- छाया आख्यान),
१.२०.८१(सौर
व्रत का माहात्म्य व विधि),
१.४६(अन्धक
से पराजय पर सूर्य द्वारा शिव की स्तुति),
१.७७(सूर्य का माहात्म्य),
१.८०(सूर्य
पूजा की विधि),
५.१,
६.१९७,
ब्रह्म
१.२७,
१.२८(द्वादश
सूर्य मूर्तियों से जगत की उत्पत्ति),
१.२९(ऋतुओं में सूर्य के वर्ण,
द्वादश नाम),
२.१९,
२.६१,
२.६८,
२.८५,
२.९६,
ब्रह्मवैवर्त्त २.१३(सूर्य द्वारा वृषध्वज को हतश्री होने का
शाप,
शिव द्वारा सूर्य का ताडन),
३.१८,
३.१९.२७(सूर्य से नाभि की रक्षा की प्रार्थना),
४.१६,
४.४८(सूर्य द्वारा माली व सुमाली को शूल मारना,
शिव
द्वारा सूर्य का दर्प भङ्ग),
४.७९(जमदग्नि
द्वारा सूर्य को राहु ग्रहण व शम्भु से पराजय का शाप,
सूर्य द्वारा जमदग्नि को क्षत्रिय से मृत्यु का शाप),
ब्रह्माण्ड
१.२.१३.१२२(संवत्सर रूप),
१.२.२१(विभिन्न
पुरियों में सूर्य के उदय व अस्त का वर्णन),
१.२.२२.६१+ (सूर्य के रथ चक्र के
प्रकार व रथ का वर्णन),
१.२.२४.३३(मास
अनुसार सूर्य के नाम),
१.२.२४.३७(सूर्य
की रश्मियों की संख्या),
१.२.२४.४१(विभिन्न ऋतुओं में सूर्य का वर्ण),
१.२.३५.२३(सूर्य
द्वारा याज्ञवल्क्य को वेद प्रदान),
२.३.१७.२१(सूर्य रश्मियों से युवती नामक अप्सरागण की
उत्पत्ति),
भविष्य १.४८+
(कृष्ण - साम्ब संवाद में सूर्य आराधना विधि),
१.५०(मास अनुसार सूर्य के नाम),
१.५३,
१.५४.१३(ऋतुओं में सूर्य के वर्ण),
१.५७.८(सूर्य हेतु जल रूप बलि का
उल्लेख),
१.६१(सूर्य
द्वारा दिण्डी को क्रिया योग द्वारा उपासना का उपदेश),
१.६८(सूर्य को प्रिय पुष्प,
सिद्धार्थ सप्तमी व्रत),
१.७१(सूर्य नाम स्तोत्र),
१.७२(जम्बू
द्वीप में सूर्य के तीन स्थान,
साम्ब की आराधना),
१.७४(सूर्य की १२ मूर्तियां),
१.७६+ (सूर्य
परिवार,
सूर्य का विराट् रूप,
प्रभाव),
१.७८(सूर्य की रश्मियों का वर्णन),
१.७९(सूर्य परिवार,
संज्ञा - छाया आख्यान),
१.९३(सूर्य आराधना,
माहात्म्य),
१.९४(सूर्य की वेद,
पुराण श्रवण - प्रियता),
१.९८(मास अनुसार सूर्य पूजा),
१.१०३(सूर्य
पूजा,
माहात्म्य),
१.११५(सूर्य को प्रिय पुष्प),
१.१२१(सूर्य
के तेज का कर्तन),
१.१२३(सूर्य
तेज का कर्तन,
सूर्य के तेज से देवों के आयुधों का निर्माण),
१.१२८(सूर्य
के २१ नाम),
१.१३३(सूर्य
का सर्वदेव मय रूप,
सूर्य के शरीर में देवों की स्थिति),
१.१४३(सूर्य
स्नान,
धूप आदि विधि),
१.१४४(सूर्य की कलाएं,
भोजकों की कलाओं में प्रविष्टि),
१.१५४(सूर्य
की राजसिक,
सात्विक आदि मूर्तियां),
१.१५५(सूर्य
का व्योम रूप,
आराधना विधि),
१.१५८(सूर्य का अदिति व कश्यप -
पुत्र के रूप में अवतार),
१.१६०(सूर्य का विराट् रूप),
१.१६३(पुष्पों द्वारा सूर्य की
पूजा),
१.१६४.८८(विभिन्न
मासों में सूर्य के नाम),
१.१६९(सूर्य
हेतु गृह व रथ दान का माहात्म्य),
१.१९७(सूर्य पूजार्थ प्रिय पुष्प),
२.१.१७.८(वृष उत्सर्ग में अग्नि का नाम),
२.१.१७.१४(सूर्य अग्नि का विन्ध्य नाम),
३.३.१६.४७(सूर्यद्युति : गजसेन - पुत्र,
आह्लाद द्वारा बन्धन),
३.३.१७(सूर्यकर्मा ,
३.४.७+
(सूर्य का विभिन्न मासों में विभिन्न भक्तों के स्वरूप में तपना),
३.४.८.५०(प्रांशुशर्मा
द्विज का तप से भाद्रपद मास का सूर्य बनना),
३.४.२५.३४(ब्रह्माण्ड देह से सूर्य
तथा सूर्य से चाक्षुष मन्वन्तर की उत्पत्ति का उल्लेख),
४.३८,
४.४०,
४.४७(मास
- सप्तमी पूजा फल),
४.४८(कल्याण
सप्तमी व्रत,
दिशाओं में आदित्यों के नाम),
४.९३(अङ्गिरा द्वारा सूर्य के कार्य
का प्रतिस्थापन),
भागवत ५.२१(सूर्य
के रथ की गति का वर्णन),
८.१०.३०(सूर्य
का बाण आदि से युद्ध),
११.७.३३(दत्तात्रेय
- गुरु),
१२.११(विभिन्न
मासों में सूर्य के रथ का वृत्तान्त),
मत्स्य
११.२६(त्वष्टा द्वारा सूर्य के तेज का भ्रमि पर कर्तन),
७४.८(दिशाओं
में सूर्य के नाम),
७९(दिशाओं
में सूर्य के नाम),
९७(दिशाओं
में सूर्य के नाम),
९८(दिशाओं में सूर्य के नाम),
१०१.३६(सौर व्रत),
१०१.६३(सौर
व्रत),
१२४.२६(विभिन्न
पुरियों में सूर्य के उदयास्त का वर्णन),
१२५.३७(सूर्य के रथ का वर्णन),
१२८(सूर्य
रश्मियों के नाम व कार्यों का वर्णन),
१५०.१५२(सूर्य का तारक - सेनानी
कालनेमि से युद्ध),
२६१.१(सूर्य
की प्रतिमा का रूप),
मार्कण्डेय ७८(विश्वकर्मा
द्वारा सूर्य के तेज का कर्तन,
देवों
द्वारा सूर्य की स्तुति आदि),
१०३(ब्रह्मा द्वारा सूर्य की स्तुति),
१०४(अदिति द्वारा सूर्य की स्तुति),
१०६(संज्ञा - छाया आख्यान),
१०६(विश्वकर्मा द्वारा सूर्य के तेज का भ्रमि पर कर्तन),
१०८(वडवा
रूपी संज्ञा का आख्यान),
लिङ्ग १.५४.६(विभिन्न
पुरियों में सूर्य के उदयास्त का वर्णन),
१.५५(सूर्य के रथ का वर्णन),
१.६०(सूर्य
रश्मियों के नाम व उनके द्वारा ग्रहों का पोषण),
वराह
८४सूर्यकान्त,
१५२.५१(सूर्य तीर्थ का माहात्म्य,
भ्रष्ट राज्य वाले बलि द्वारा सूर्य आराधना से चिन्तामणि की
प्राप्ति),
१७७(साम्ब द्वारा प्रात:,
मध्याह्न
व सायंकालों में विशिष्ट नामों द्वारा सूर्य की उपासना),
२०८(पतिव्रता के प्रभाव से सूर्य की प्रसन्नता का वृत्तान्त),
वामन
५(शिव द्वारा सूर्य की भुजाओं को ह्रस्व करना),
१५(सुकेशि के नगर का सूर्य द्वारा पातन,
शिव द्वारा सूर्य का पातन,
लोलार्क
नाम),
६९.५४(सूर्य का शाल्व से युद्ध),
वायु ५०.८६,
५०.९२(विभिन्न पुरियों में सूर्य का
उदयास्त),
५०.९९अतिरिक्त(सूर्य
की ग्रह पोषक रश्मियां),
५०.१२१(मुहूर्त,
काष्ठा
में सूर्य की गति),
५०.१२६(विषुवत व वीथियों में सूर्य की गति),
५१.२०(सूर्य
से उष्ण व चन्द्रमा से शीतल जल का स्रवण),
५१.५४(सूर्य के रथ की गति का वर्णन),
५२.१(सूर्य
रथ व्यूह का वर्णन),
५६.२०(परिवत्सर का रूप),
८४.३२(संज्ञा - छाया आख्यान),
१०४.८२(सौर पीठ की चक्षु प्रदेश में स्थिति का उल्लेख),
विष्णु २.८(सूर्य
के रथ की गति का वर्णन),
२.९(सूर्य
द्वारा आकाशगङ्गा के जल का कर्षण करके वर्षण का कार्य),
२.१०(सूर्य रथ व्यूह का वर्णन),
२.११.१६(सूर्य
रथ व्यूह में गणों के विशिष्ट कार्य),
३.२.९(भ्रमि पर सूर्य तेज के कर्तन से आयुध निर्माण),
विष्णुधर्मोत्तर १.३०,
१.३१(सूर्य द्वारा भोजनार्थ कार्तवीर्य से याचना,
कार्तवीर्य के शरों में प्रवेश),
१.३५(सूर्य द्वारा हनन के लिए तत्पर जमदग्नि को भेंट,
पुत्रत्व),
३.६७(सूर्य व्यूह का मूर्ति रूप),
३.१६७(सूर्य व्रत),
३.१७१(सूर्य पूजा की प्रशंसा),
स्कन्द
१.२.१३.१४८(शतरुद्रिय प्रसंग में सूर्य द्वारा ताम्र लिङ्ग की पूजा),
१.२.१८.८४(सूर्य द्वारा शम्बर अस्त्र के प्रयोग से देवों व दानवों के
रूपों का विपर्यय),
१.२.४३.१८(नारद
- प्रोक्त सूर्य के १०८ नाम),
१.२.४९(जयादित्य का माहात्म्य),
२.४.३.५+ (कार्तिक माहात्म्य के संदर्भ में अरुण - सूर्य संवाद),
२.७.१९.२०(सूर्य
के अग्नि से श्रेष्ठ व गुरु से अवर होने का उल्लेख),
३.२.१३(संज्ञा - छाया - वडवा आख्यान),
४.१.९.३४(सूर्य
पद प्राप्ति के उपाय,
शिवशर्मा व गणद्वय के संवाद का प्रसंग),
४.१.९.७७(सूर्य
के ७० नाम),
४.१.९(सूर्य लोक प्रापक कर्म,
सूर्य के
७० नाम),
४.१.४६(काशी
में दिवोदास के राज्य में छिद्र दर्शन में सूर्य की असफलता,
१२ आदित्य नामों से काशी में निवास,
लोलार्क उपनाम),
४.१.४९.१०(द्रौपदी द्वारा सूर्य की आराधना,
सूर्य
द्वारा स्थाली प्रदान),
४.१.४९(सूर्य
द्वारा गभस्तीश्वर लिङ्ग की उपासना,
शिव व
पार्वती की स्तुति,
मयूखादित्य नाम प्राप्ति),
५.१.१५,
५.१.३२+
(अर्जुन द्वारा नरादित्य मूर्ति की स्थापना,
स्तुति,
कृष्ण द्वारा सूर्य मूर्ति की स्थापना,
१०८ नाम स्तोत्र पठन),
५.१.५६,
५.२.५६,
५.३.२०.९,
५.३.३४(ब्राह्मण
के तप से सूर्य की नर्मदा तीर पर स्थिति,
रवि
तीर्थ का माहात्म्य),
५.३.३९.२९,
५.३.१७२,
६.३३(विन्ध्य
पर्वत की मेरु से स्पर्द्धा,
सूर्य के
मार्ग का अवरोधन,
अगस्त्य द्वारा विन्ध्य का नमन),
६.१२९,
६.१३५,
६.१५७,
६.२७८,
७.१.११.७७(संज्ञा
- छाया आख्यान),
७.१.११.१४०(विश्वकर्मा
द्वारा भ्रमि पर सूर्य के तेज का कर्तन,
देवों व ऋषियों द्वारा सूर्य की स्तुति),
७.१.१३.९(युगानुसार
सूर्य के नाम),
७.१.२०.४४(सूर्य
के प्रभाकर नाम का कारण),
७.१.१३९(तीर्थों
में सूर्य के नाम),
७.१.२७४(प्राची
सूर्य का
संक्षिप्त
माहात्म्य,
स्नान),
७.१.२७९(सूर्य के १०८ नाम),
७.४.१७.१९(द्वारका के विभिन्न
दिशाओं में द्वारों पर स्थित सूर्यों व उनके सहायकों के नाम),
हरिवंश
१.९(संज्ञा - छाया आख्यान),
३.७१.४९,
महाभारत
शान्ति ३१८.४१(अव्यक्त प्रकृति का नाम),
अनुशासन १०२.३२,
योगवासिष्ठ ३.८५,
वा.रामायण ४४०,
लक्ष्मीनारायण १.४२(सूर्य द्वारा हिरण्मय पुरुष की स्तुति),
१.६१(संज्ञा - छाया आख्यान),
१.८३,
१.१०६.१(शिव द्वारा शूल से सूर्य को अष्टधा विभाजित करना,
कश्यप
द्वारा शिव को पुत्र के शिर कर्तन का शाप,
माली - सुमाली द्वारा व्याधि नाश हेतु पठित सूर्य मन्त्र व
स्तोत्र),
१.१०६.१४(सूर्य कवच का वर्णन),
१.२७२,
१.३१०,
१.३३४,
१.३६२,
१.४५५,
१.४६४,
१.५०२,
१.५४४.४३(सौराष्ट}
में सूर्य की १०८ नामों/रूपों से प्रतिष्ठा),
१.५७३,
२.१०९.२०(सूर्यकेतु,
२.११०.६६(सूर्यकेतु
,
२.२६३,
३.३,
३.७५.८६,
३.१०१.६५,
३.१२२.१०८,
३.१४२.४७(सूर्य रथ व्यूह ),
३.२३३.४८सूर्यकान्त,
कथासरित्
५.२.१४सूर्यतपा,
९.६.२८,
द्र.
आदित्य,
भास्कर,
व्यास
soorya/suurya/surya सूर्यकान्त पद्म ६.१३२.१३(सूर्यकान्त में रवि के योग से वह्नि उत्पन्न होने का उल्लेख), सूर्यप्रभ कथासरित् ८.१.१३, ८.१.२०, ८.१.५८, ८.३.२२, ८.६.१, ८.७.४८, १२.२६.३, सूर्यभानु ब्रह्मवैवर्त्त ४.५, वा.रामायण ७.१४, सूर्यरथ लक्ष्मीनारायण ३.१४२ सूर्यवर्चा स्कन्द १.२.६६.५९(यक्षेन्द्र सूर्यवर्चा द्वारा भूभार हरण में अकेले सामर्थ्य की उक्ति, ब्रह्मा द्वारा शाप, घटोत्कच - पुत्र बर्बरीक बनना ), लक्ष्मीनारायण ३.२३.२, sooryavarchaa/ suuryavarchaa/ suryavarchaa सूर्यवर्ता वराह ८४ सूर्यवर्मा भविष्य ३.३.१२.७७(कालिय राजा का भ्राता, बलखानि द्वारा बन्धन), ३.३.१२.१२३(द्विविद वानर का अंश), ३.३.३१.१२५(पृथ्वीराज - पुत्र?, कान्तिमती से विवाह, कर्बुर राक्षस द्वारा पत्नी के हरण का वृत्तान्त ) suuryavarmaa/sooryavarmaa / suryavarmaa सूर्या स्कन्द ५.१.५६.१४(संज्ञा का अनुसूर्या सावित्री नाम, छाया - सूर्य - संज्ञा की कथा), ७.४.१७.१९, ७.४.१७.२६, सृंजय ब्रह्मवैवर्त्त १.२०, १.२४, मत्स्य ४६.२७, स्कन्द ३.३.४.३४, हरिवंश १.३.९६, लक्ष्मीनारायण १.२१०, srinjaya सृष्टि अग्नि १७(तन्मात्राओं व हिरण्मय अण्ड से सृष्टि), १९, कूर्म १.७(विभिन्न प्रकार के तिर्यक्, ऊर्ध्व, अधो आदि सर्गों का वर्णन), १.८(स्वायम्भुव मनु व शतरूपा से उत्पत्ति), देवीभागवत ७.१, नारद १.४२(जगत की सृष्टि), २.५८.४३(तन्मात्रात्मक सृष्टि की कृष्ण से उत्पत्ति), पद्म १.२(महाभूतों से सृष्टि रचना का प्रारम्भ, भीष्म - पुलस्त्य संवाद), १.३(ब्रह्मा के शरीर से सृष्टि), १.६(दक्ष - कन्याओं से मैथुनी सृष्टि), २.२२, ६.२२९(नारायण के शरीर से सृष्टि), ब्रह्म १.१, ब्रह्मवैवर्त्त १.३(तन्मात्रा, महाभूत आदि की सृष्टि), १.५, १.७(ब्रह्मा द्वारा विश्व की सृष्टि), १.८(ब्रह्मा व सावित्री से वेदशास्त्रादि की सृष्टि), १.९(महर्षिकृत सृष्टि), २.२(राधा व कृष्ण की देह से सृष्टि), ब्रह्माण्ड १.१.४.३(गुणसाम्य होने पर लय तथा गुणाधिक्य पर सृष्टि होने का कथन), १.२.८.३९(ब्रह्मा के शरीर से सृष्टि), १.२.९(ब्रह्म शरीर से सृष्टि), १.२.३६.९६(ध्रुव व भूमि - पुत्र सृष्टि द्वारा छाया को पत्नी बनाना), १.५.७४(ब्रह्म शरीर से सृष्टि), १.५.८४, २.३.१.५७(ब्रह्मा के शरीर के अङ्गों से सृष्टि), ३.१.१.५८(ब्रह्म शरीर से सृष्टि), भविष्य १.२(भास्कर से सृष्टि), १.२(ब्रह्मा के शरीर से सृष्टि), ४.२, ३.४.२५.३३(ब्रह्माण्ड शरीर से सृष्टि), भागवत २.५(तन्मात्राओं की सृष्टि), ३.५, ३.१०(दस प्रकार की सृष्टियां, प्राकृत व वैकृत सृष्टियां), ३.२०, ३.२६(तन्मात्राओं व तत्त्वों की सृष्टि), ६.६, ८.५.३६(विराट् शरीर से सृष्टि), ११.२४(तन्मात्रा आदि की सृष्टि), मत्स्य ३(ब्रह्म शरीर से सृष्टि), ४.३३(मैथुनी सृष्टि), ५(दक्ष कन्याओं से सृष्टि), १७१(देवयोनि सृष्टि), मार्कण्डेय ४५(सृष्टि के सम्बन्ध में मार्कण्डेय व क्रौष्टुकि संवाद), ४८(ब्रह्म शरीर से सृष्टि), ४९(मैथुन से जन्म), ५०(मानसी सृष्टि), लिङ्ग १.६३(दक्ष कन्याओं से सृष्टि), वराह ९, ९०(देवी, उत्पत्ति, वृद्धि), १८७, वायु ६.४०, ८.३७, ९(देव, पितर, असुर आदि की ब्रह्मा के शरीर से सृष्टि, ब्रह्मा द्वारा शरीरों का त्याग), १०, ४१, ६६, १०२, १०३.९(सृष्टि प्रक्रिया का वर्णन), विष्णु १.२(२४तत्त्वों/तन्मात्राओं से जगत की सृष्टि का वर्णन), १.५(अविद्या आदि विविध ऊर्ध्व व अर्वाक् सर्गों का कथन), १.८(रुद्र सृष्टि), १.२१.२९(वैवस्वत मन्वन्तर में सृष्टि), विष्णुधर्मोत्तर १.१०७(ब्रह्मा के शरीर से प्रजा की सृष्टि), १.२४८, शिव २.१.१५(कैलास, वैकुण्ठ, नवधा ब्रह्म सृष्टि, शिव सृष्टि), २.१.१६(महाभूतों की सृष्टि, मरीचि आदि की सृष्टि, मैथुन से प्रजा की सृष्टि, दक्ष द्वारा सृष्टि), ६.१५(शिव से उत्पत्ति व उपसंहार), ६.१५.२३(सृष्टि चक्र का कथन), ६.१६(सृष्टि शिव से या शक्ति से?, ओंकार से), ६.१७(स्कन्दकृत सृष्टि तत्त्व), ७.१.८+ (शिव क्रीडा निमित्त सृष्टि), ७.१.१५+ (मैथुन द्वारा सृष्टि), स्कन्द ३.२.१०(कामधेनु की हुंकार से वणिजों की सृष्टि), ४.२.५७.१०९(सृष्टि गणेश का संक्षिप्त माहात्म्य), ७.१.२१(दक्ष कन्याओं से सृष्टि), हरिवंश १.१(ब्रह्मा से सृष्टि), १.३(दक्ष से सृष्टि), ३.११(महाभूतों की सृष्टि), ३.१४, ३.३६(ब्रह्मा व दक्ष से सृष्टि), महाभारत शान्ति ३४२, योगवासिष्ठ ३.२, ३.३.१५(प्रतिस्पन्द से स्पन्द सृष्टि का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.५, १.१४(ब्रह्मा से अज्ञान व अधर्म की सृष्टि), १.१५(ब्रह्मा से धर्म की सृष्टि), १.३८(ब्रह्मा से ऋषि आदि की मानसी सृष्टि), १५१, १२१२, १.५७०.६२(भगवान् के प्रात: गर्भ रूप, सायं सृष्टि रूप व रात्रि में प्रलय रूप होने का उल्लेख), २.२५२.४६, ३.१७.१(सृष्टिमान , ४.१०१.५(संकल्प, दर्शन, स्पर्श, मैथुन आदि से सृष्टियों का कथन), कथासरित् १.२.१०(कल्पान्त में शिव के रक्त बिन्दु से सृष्टि की उत्पत्ति का कथन ), द्र. ब्रह्मपुरुष, सर्ग srishti Comments on Srishti/creation/manifestation सृष्टि - संहार स्कन्द ५.३.१४+
|