PURAANIC SUBJECT INDEX पुराण विषय अनुक्रमणिका (Suvaha - Hlaadini) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Saudaasa, Saubhari, Saubhaagya, Sauveera, Stana, Stambha / pillar etc. are given here. सोमशूर कथासरित् १२.५.१९१, १२.५.३९० सोमश्रवा वामन ७९ सोमस्रोत वराह १४३ सोमस्वामी कथासरित् ७.३.९८, सोमाभिषेक वराह १४१ सोमिका कथासरित् १२.१०.८ सोमिल कथासरित् ८.४.८० सोमेश नारद १.६६.११३(सोमेश की शक्ति खेचरी का उल्लेख), सौकरव वराह १३९ सौगन्धिकवन वामन ४७ सौत्रामणी पद्म २.३७.३६(सौत्रामणि में मेष हनन के विधान का उल्लेख), वायु १०४.८३(सौत्रामणि यज्ञ की कण्ठ देश में स्थिति), स्कन्द ५.३.३०.८, ६.२६३.१३(कल्पना विजय के सौत्रामणि होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.१५७.३४(सौत्रामणि के हस्तों में न्यास का उल्लेख ) sautraamanee/sautramani सौदामिनि मत्स्य ६.३४(विनता - कन्या), वामन २२(सुदामा - पुत्री, कुरु - पत्नी), लक्ष्मीनारायण १.५६४.२४(शाण्डिल्य - पत्नी सती सौदामिनी का वृत्तान्त ), कथासरित् ८.२.३५०, १२.६.३१, saudaamini/ saudamini सौदास नारद १.९(सौदास द्वारा वसिष्ठ से शाप प्राप्ति की कथा, राक्षस बनकर शक्ति मुनि का भक्षण, ब्रह्मराक्षस से वार्तालाप), भागवत ९.९(सुदास - पुत्र, मदयन्ती - पति, मित्रसह उपनाम, वसिष्ठ शाप से कल्माषपाद नाम, शक्ति का भक्षण, शाप प्राप्ति, वसिष्ठ की कृपा से अश्मक पुत्र की प्राप्ति), विष्णु ४.४.४०(सौदास चरित्र, मित्रसह उपनाम, राक्षस बनना आदि), स्कन्द ६.५२(सौदास के राक्षस बनने व मुक्ति का प्रसंग, राक्षस - अनुज को मारनेv पर राक्षसत्व से मुक्ति), ७.३.२(मदयन्ती - पति, व्याघ्र| रूप, उत्तंक से संवाद होने पर शाप से मुक्ति), वा.रामायण ७.६५(वीरसह उपनाम, कल्माषपाद बनने की कथा ), लक्ष्मीनारायण १.३८७, १.५५१, २.३१, saudaasa/ saudasa सौन्दर्य ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.३३(देह के विभिन्न अङ्गों के सौन्दर्य हेतु देय दानों का वर्णन ) सौभ भागवत १०.७६(मय - निर्मित सौभ विमान की शाल्व को प्राप्ति), वामन ९१, सौभरि गणेश १.५१.६१(सौभरि ऋषि द्वारा क्षत्रिय को गणेश चतुर्थी व्रत का निर्देश), २.१३५.३(मनोमयी - पति, क्रौञ्च गन्धर्व को मूषक होने का शाप), गर्ग २.१४(सौभरि द्वारा गरुड के लिए यमुना जल में प्रवेश का वर्जन, कालिय नाग द्वारा यमुना में शरण की कथा), ४.१५+ (सौभरि द्वारा जामाता मान्धाता को यमुना पञ्चाङ्ग का कथन), पद्म ६.१९९+ (सौभरि द्वारा युधिष्ठिर को कालिन्दी माहात्म्य का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१९.१०८(कालिय व गरुड की कथा), भागवत ९.६.३८(सौभरि द्वारा मान्धाता - कन्याओं से विवाह की कथा), १०.१७.१०(यमुना में मत्स्य भक्षण के कारण सौभरि द्वारा गरुड को शाप), विष्णु ४.२.६९(बह्वृच संज्ञा, मत्स्य साम्मद को देखकर सौभरि की प्रजाजनन की इच्छा, मान्धाता - पुत्रियों से विवाह की कथा, भोगों से वैराग्य ), लक्ष्मीनारायण १.४७०.५८(सौभरि के शाप के कारण गरुड की यमुना में कालियह्रद में जाने में असमर्थता), saubhari
सौभाग्य अग्नि १७८.१४(सौभाग्य अष्टक द्रव्यों के नाम - स्थापयेद् घृतनिष्पावकुसुम्भक्षीरजीवकं ॥ तरुराजेक्षुलवणं कुस्तुम्बुरुमथाष्टमं ।), पद्म १.२०.६१(सौभाग्य व्रत की संक्षिप्त विधि ), १.२९.५(सौभाग्य शयन व्रत, विष्णु के वक्षःस्थल से सौभाग्य अष्टक की उत्पत्ति, गौरी - शङ्कर न्यास), भविष्य ४.२५(विष्णु के वक्ष पर स्थित सौभाग्य का दक्ष व प्राणियों, द्रव्यों में वितरण, सौभाग्य शयन व्रत), मत्स्य ६०(सौभाग्य शयन व्रत में सती व शिव की आराधना, विष्णु के वक्षस्थल के सौभाग्य का दक्ष द्वारा पान, पृथ्वी पर पतित द्रव्य से सौभाग्याष्टक की उत्पत्ति, सौभाग्य अष्टक द्रव्य - इक्षवोरसराजाश्च निष्पावाजाजिधान्यकम्।। विकारवच्च गोक्षीरं कुसुम्भं कुंकुमं तथा। लवणं चाष्टमन्तद्वत् सौभाग्याष्टकमुच्यते।।), १०१.१६(सौभाग्य व्रत - फाल्गुनादितृतीयायां लवणं यस्तु वर्जयेत्। समाप्ते शयनं दद्यात् गृहञ्चोपस्करान्वितम्।। संपूज्य विप्रमिथुनं भवानी प्रीयतामिति। गौरीलोके वसेत्कल्पं सौभाग्यव्रतमुच्यते।। ), वराह ५८(फाल्गुन शुक्ल तृतीया को सौभाग्य व्रत की विधि), विष्णुधर्मोत्तर ३.८२.८(देवी के मस्तक पर पद्म सौभाग्य का प्रतीक - देव्याश्च मस्तके पद्मं तथा कार्यं मनोहरम् । सौभाग्यं तद्विजानीहि शङ्खमृद्धिं तथा परम्।।), स्कन्द १.२.३४.८८(सौभाग्य अष्टक द्रव्य - कुंकुमं पुष्पश्रीखंडं तांबूलांजनमिक्षवः॥ सप्तमं लवणं प्रोक्तमष्टमं च सुजीरकम्॥), ४.२.६६.२ (अप्सरसकूप/सौभाग्योदक कूप का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.८.६९(अप्सरस तीर्थ में मधु दान से सौभाग्य प्राप्ति का उल्लेख), ५.२.६१(८४ लिङ्गों में ६१वें सौभाग्येश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, मदनमञ्जरी द्वारा सौभाग्येश्वर की पूजा से पति प्रेम की प्राप्ति ), ५.३.१०६.२ (तृतीया को सौभाग्यकरणतीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१९८.५० (दक्ष द्वारा विष्णु के वक्षस्थल से सौभाग्य का पान, दक्ष-सुता सती की उत्पत्ति), ५.३.१९८.९१ (शूलेश्वरी भृगुक्षेत्रे भृगौ सौभाग्यसुन्दरी ॥), ६.१४२.३१(सहस्राक्ष व कामदेव द्वारा गणेश को सौभाग्य दान का उल्लेख), ७.१.१२४(तृतीया को सौभाग्यदायिनी गौरी का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण २.१४१.६३ (त्रयस्त्रिंशदण्डकश्च षोडशतिलकान्वितः । द्वादशतलभागश्च सौभाग्यमेरुरेव सः ।), ३.१३६.६१(सौभाग्य शयन व्रत की विधि), saubhaagya/ saubhagya
सौमनस हरिवंश ३.३५.८, वा.रामायण ४.४०, सौमिनी शिव ४.९(व्यभिचारिणी द्विज कन्या सौमिनी का जन्मान्तर में चण्डाल कन्या बनना, गोकर्ण में मुक्ति), सौम्य मत्स्य २८६.१०(सौम्या देवी का स्वरूप), हरिवंश ३.३५.३९, कथासरित् १८.१.१३, सौरभ लक्ष्मीनारायण ४.७५, सौराष्ट} गरुड १.६९.२३(शुक्ति आकर का स्थान), नारद १.५६.७४३(सौराष्ट} देश के कूर्म के पुच्छ मण्डल होने का उल्लेख), पद्म ६.१९०, स्कन्द १.१.७.३३(सौराष्ट} में सोमेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), ३.३.४.३४, ७.१.२५७, लक्ष्मीनारायण १.१४४, १.२१७, १.३५०, १.३५२, ४.८०.१७(राजा नागविक्रम के यज्ञ में सौराष्ट्रीय द्विजों के पूजक होने का उल्लेख ) sauraashtra/ saurashtra सौरी नारद १.६६.९५(सौरि विष्णु की शक्ति क्षमा का उल्लेख), पद्म १.४६.७९, सौवीर अग्नि ३८०(सौवीर नरेश द्वारा जड भरत से अद्वैत ब्रह्म विषयक शिक्षा प्राप्ति), नारद १.४८+ (सौवीर राजा द्वारा जड भरत को शिबिका वाहक बनाने पर भरत से ज्ञान प्राप्ति की कथा ), १.५०.३८, भविष्य ४.१३०, भागवत ११.२१.८, विष्णु २.१४, विष्णुधर्मोत्तर १.१६७, १.१७०, लक्ष्मीनारायण १.४३३, sauveera स्कन्द अग्नि ५०.२७(स्कन्द की प्रतिमा के लक्षण), ब्रह्म २.५, ब्रह्मवैवर्त्त ३.१(शिव वीर्य से स्कन्द की उत्पत्ति का आख्यान), ४.६, ब्रह्माण्ड १.२.१०.८०(पशुपति व स्वाहा - पुत्र), २.३.७.३८०(प्रस्कन्द : पिशाचों के १६ वर्गों में से एक), २.३.१०.३३(स्कन्द की उत्पत्ति की कथा, देवों द्वारा स्कन्द को भेंट), भविष्य १.१२४(सूर्य - अनुचर दण्डनायक का रूप), ३.४.२५.११३(स्कन्द की अव्यय पुरुष के स्कन्दन से उत्पत्ति), ४.४२, मत्स्य १५९+ ( स्कन्द का जन्म, देवों से भेंट प्राप्ति, तारक वध), वराह १७, वामन ५४(शिव वीर्य से स्कन्द की उत्पत्ति का प्रसंग), ५८(क्रौञ्च पर्वत को मारनेv में स्कन्द की झिझक), ९०.२१(शरवण में विष्णु की स्कन्द नाम से प्रतिष्ठा का उल्लेख), वायु २७.५०, ७२.२६(स्कन्द की उत्पत्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.२३०(शक्र ग्रहों की शान्ति हेतु स्कन्द द्वारा अनेक ग्रहों की सृष्टि), ३.७१, शिव ६.१, स्कन्द १.१.७(लिङ्ग पूजक आचार्य), १.२.१३(शतरुद्रिय प्रसंग में स्कन्द द्वारा पाषाण लिङ्ग की पूजा), १.२.२९, २.७.९(पार्वती व शिव की रति से स्कन्द के जन्म की कथा), २.७.९(काम का रूप), ३.२.८, ४.१.२५+ (स्कन्द द्वारा अगस्त्य को काशी महिमा का कथन), ४.१.३३.१२५(स्कन्देश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.६१.१२०(स्कन्द तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.२६(स्कन्देश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.३४(स्कन्द के जन्म की कथा, शक्ति से तारक वध के पश्चात् शक्ति का शिप्रा में क्षेपण, भोगवती का प्रकट होना), ५.३.१११(स्कन्द तीर्थ का माहात्म्य, स्कन्द के जन्म की कथा, स्कन्द द्वारा तप से शिव व पार्वती की माता - पिता रूप में प्राप्ति), ५.३.२३१.२०, ६.७१(रक्त शृङ्ग के निश्चलीकरण हेतु स्कन्द द्वारा तारक वध के पश्चात् शक्ति को रक्त शृङ्ग पर स्थापित करना), हरिवंश १.१.४४(स्कन्द द्वारा स्वतेज का संक्षेप), लक्ष्मीनारायण १.३३७, २.३२.२९(स्कन्द द्वारा स्कन्दापस्मार ग्रह को उत्पन्न करके कृत्तिकाओं को देने का उल्लेख ), २.१५७.२४, कथासरित् ९.१.२०५, द्र. कुमार, षडानन skanda स्कन्ध महाभारत सभा ३८ दाक्षिणात्य पृष्ठ ७८४(यज्ञवराह के वेदिस्कन्ध होने का उल्लेख ) स्तन गरुड २.३०.५३/२.४०.५३(मृतक के स्तनों में गुञ्जक देने का उल्लेख), २.३०.५५/२.४०.५५(मृतक के स्तनों में मौक्तिक देने का उल्लेख), ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.४९(स्तन सौन्दर्य हेतु श्रीफल दान का निर्देश), भागवत ३.१२.२५(ब्रह्मा के दांये स्तन से धर्म के जन्म का उल्लेख), शिव ५.१०.४३, स्कन्द ५.३.८३.१०७, ५.३.१९२.७,हरिवंश २.८०.३०, ३.७१.५५, महाभारत कर्ण ३४.१०४, लक्ष्मीनारायण १.११०.१२(नारायण की मूर्ति में स्तन होने तथा नर की मूर्ति के स्तन रहित होने का कथन), १.१५५.५२(अलक्ष्मी के वल्मीक सदृश स्तनों का उल्लेख),२.१५.३०, ३.११५.८२(ललिता देवी के स्तन स्वाहा - स्वधाकार रूप होने का उल्लेख ), ४.१०१.१३०, stana स्तम्बजिह्व लक्ष्मीनारायण २.२५३.१९(स्तम्ब द्वारा पत्र प्रदान का उल्लेख), कथासरित् ५.२.१९६, द्र. ब्रह्मस्तम्ब, रणस्तम्ब स्तम्भ पद्म ३.१८, ब्रह्मवैवर्त्त ३.४.५३(श्रोणी सौन्दर्य हेतु सुवर्णरम्भा स्तम्भ दान का निर्देश), भविष्य ४.१३३.३२(इष्टापूर्त्त रूपी स्तम्भ - द्वय का उल्लेख), मत्स्य २५५(भवन में स्तम्भ का मान), २७०(स्तम्भों की संख्या अनुसार मण्डप का नाम), स्कन्द १.२.३(दान के लिए स्तम्भ तीर्थ की पवित्रता, देवशर्मा द्वारा पुण्य दान का वृत्तान्त), १.२.६.२४, १२३५, १.२.४५.११०, १.२.४८(स्तम्भ तीर्थ माहात्म्य के अन्तर्गत सोमनाथ के वृत्तान्त का वर्णन), १.२.५८(महीसागर सङ्गम तीर्थ के स्तम्भ नाम का कारण), १.३.२(वह्नि, ब्रह्मा व विष्णु द्वारा स्तम्भ के अन्त के अन्वेषण में असफलता, स्तुति, स्तम्भ का अरुणाचल रूप में रूपान्तरण), २.७.१७(ब्राह्मण, कान्तिमती - पति, वेश्यासक्ति से व्याध जन्म की कथा), ४.२.९७.६४(महाश्मशान स्तम्भ में उमा सहित रुद्र का वास), लक्ष्मीनारायण २.१४८.५२(दिशाओं में १६ स्तम्भों के देवताओं के स्वरूप के ध्यान व पूजन मन्त्र), २.१५८.५३(प्रासाद के स्तम्भ की नर की बाहुओं से उपमा ), २.२७८.४९, २.२७९.८, ३.४६.३५, कथासरित् ५.१.७, ७.३.८, १४.२.१८१, १८.२.१४५, stambha स्तुतस्वामी वराह १४८,
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