PURAANIC SUBJECT INDEX पुराण विषय अनुक्रमणिका (Suvaha - Hlaadini) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Setu / bridge, Soma, Somadutta etc. are given here. सेतु गर्ग १०.२७(अनिरुद्ध द्वारा बल्वल दैत्य के वध हेतु समुद्र पर बाणमय सेतु का निर्माण), नारद २.७६(वसु - मोहिनी संवाद के अन्तर्गत रामेश्वर सेतु क्षेत्र का माहात्म्य), पद्म १.५९.१(सेतुबन्ध माहात्म्य के संदर्भ में चोर द्वारा कान्तार में गोशिर की स्थापना रूप सेतु के पुण्य से जन्मान्तर में राजा बनने की कथा), भागवत १०.३७.१४(भगवान् के सेतुओं का रक्षक होने का उल्लेख), मत्स्य ५१.२६(अग्नि का नाम, अपां योनि), स्कन्द ३.१.१+ (रामेश्वर सेतु का माहात्म्य), ३.१.७.५२(नल द्वारा सेतु निर्माण का आरम्भ), ३.१.७.५९(सेतु की पश्चिम कोटि दर्भशय्या तथा प्राक्कोटि देवीपुर होने का उल्लेख), ३.१.१०.१४(अर्णवों के सेतु रूप गन्धमादन पर्वत का माहात्म्य), ३.१.३०.१२१(धनुष्कोटि में अर्धोदय व महोदय सेतु-द्वय का उल्लेख), ३.१.५०(सेतु - माधव का माहात्म्य, पुण्यनिधि राजा का वृत्तान्त), हरिवंश १.३२.८६(द्रुह्यु-पुत्र, अङ्गारसेतु-पिता), वा.रामायण ६.२२(राम द्वारा वानरों की सहायता से समुद्र पर सेतु का निर्माण ), कालिका ५६.७२(प्रणव रूप सेतु के उदात्त, अनुदात्त, प्रचित व औ भेदों की ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र संज्ञा), लक्ष्मीनारायण १.४३८(सेतुबन्ध स्थान पर राजा पुण्यनिधि के यज्ञ के अवभृथ स्नान में लक्ष्मी द्वारा राजा की परीक्षा की कथा), कथासरित् ७.६.१३(तप से विद्या प्राप्ति के प्रयत्न के संदर्भ में शक्र द्वारा सिकता से गङ्गा पर सेतु निर्माण का द्रष्टान्त), द्र. धर्मसेतु setu
Comments on Setu formation by Nala सेतुबन्ध पद्म १.५९, स्कन्द ३.१, लक्ष्मीनारायण १.४३८ सेन गणेश २.११४.३९(सिन्धु - सेनानी, कार्तवीर्य का पाश से बन्धन, हिरण्यगर्भ द्वारा वध ), द्र. आदित्यसेन, इन्द्रसेन, उग्रसेन, कीर्तिसेन, गन्धर्वसेन, गुह्यसेन, गूढसेन, चन्द्रसेन, चित्रसेन, देवसेना, द्युमत्सेन, नन्दिसेन, पवनसेन, प्रसेन, बृहत्सेन, भद्रसेन, भीमसेन, महासेन, यज्ञसेन, याज्ञसेनी, रुद्रसेन, रूपसेन, वसुषेण, विष्वक्सेन, विहितसेन, वीरसेन, वृद्धसेना, शूरसेन, श्रुतसेन, सत्यसेन, समुद्रसेन, सर्वसेन, सिद्धसेन, सुषेण sena सेनजित् द्र. रथ सूर्य सेना अग्नि २४२(सेना के व्यूह भेदों का वर्णन),गर्ग ७.७.३४(सेना में सैनिकों आदि की संख्या के अनुसार सेना के नाम), शिव ७.१.८, स्कन्द १.१.२८, ५.३.१०९.१, योगवासिष्ठ ३.३२+, वा.रामायण ६.७.२०(देव सेना की सागर से उपमा ) senaa सेनानी नारद १.६६.१३३(सेनानी गणेश की शक्ति रात्रि का उल्लेख), पद्म १.४०(सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक ) senaanee/ senani सेनापति वराह ३६ सेवा अग्नि १३२.३(सेवा चक्र में अक्षर न्यास से सेवक - सेव्य फल का विचार ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१७.४६, स्कन्द ५.२.७७.४१, लक्ष्मीनारायण १.३१९.१३(, २.२११.४२, sevaa सैन्धव वामन ९०.३१(सैन्धव अरण्य में विष्णु का सुनेत्र नाम), सैरन्ध्री भविष्य ४.६४, सोनायन लक्ष्मीनारायण २.४५.७३ सोपान पद्म ५.१०५.२१०(ह्रद में स्नान के लिए वेद के सोपान रूप होने का कथन), ब्रह्माण्ड ४.३७.५७, लक्ष्मीनारायण ३.८३.१३, सोम अग्नि ८४.३२(सौम्य : ८ देवयोनियों में षष्ठम), २७४(सोम वंश का वर्णन, अत्रि से सोम का जन्म, सोम से वंश वृद्धि), कूर्म १.२०(सोम वंश का वर्णन), १.२२(सोम वंश का कीर्तन), गणेश २.७६.१४(सोम के मुण्ड से युद्ध का उल्लेख), गरुड १.९५.१८(सोम द्वारा व्यभिचारिणी को शौच दान का उल्लेख), १.१३९(सोम वंश का वर्णन), देवीभागवत ५.८.७१(सोम के तेज से देवी के स्तनों की उत्पत्ति का उल्लेख), नारद १.११९.४०(कुबेर का सोम से तादात्म्य - ऋक्षयक्षेश), पद्म १.२०.५९(सौम्य व्रत की संक्षिप्त विधि), ३.१८.९६(सोम तीर्थ का माहात्म्य), ६.१६१(कौषीतक द्वारा स्थापित सोम तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्म १.७(अत्रि के रेतः का ऊर्ध्वगति होकर सोम बनने, दिशाओं द्वारा ग्रहण, प्रजापति द्वारा रथ पर स्थापन आदि का वर्णन) , १.११०.९(चन्द्रमा की कला कोका का पितरों द्वारा वरण), २.३५(सोम पर गन्धर्वों का अधिकार होने पर देवों द्वारा सरस्वती के मूल्य पर सोम का क्रयण), २.४९(सोम तीर्थ का माहात्म्य, ओषधियों द्वारा सोम की पति रूप में प्राप्ति), २.१०४(सोमतीर्थ का सोमेश्वर शिव से तादात्म्य आदि), ब्रह्माण्ड १.१.५.२२(यज्ञवराह के सोमशोणित होने का उल्लेख), १.२.१३.१२९(इडवत्सर रूप), २.३.७.२२(सोम की गभस्तियों से कुरु नामक अप्सरा गण की उत्पत्ति),२.३.६५.८(अत्रि के तेज के नेत्रों से स्रवण से सोम की उत्पत्ति, सोम का रथारोपण, तारा हरण आख्यान), भविष्य १.१३८.३८(सोम की नर ध्वज का उल्लेख), ३.४.१७.८१(षष्टम् वसु, सुदेव - पुत्र पीपा रूप में अवतरण), ३.४.२०.१८(अपरा प्रकृति के देवों में से एक, रुद्र के सोम-पति होने का उल्लेख), ३.४.२२.३६(जन्मान्तर में निम्बादित्य मत में स्थित व्यास भक्त, रहःक्रीडा ग्रन्थ की रचना), ३.४.२५.३५(सोम की ब्रह्माण्ड के नेत्र से उत्पत्ति,सोम से वैवस्वत मन्वन्तर की रचना का उल्लेख), ४.५९(सोम अष्टमी व्रत), ४.९९.१(सोम की प्रिय तिथि पौर्णमासी में जय संग्राम आदि होने का कथन), भागवत ४.१.१५(अत्रि द्वारा तप से सोम, विष्णु व शिव को पुत्र रूप में प्राप्ति का वृत्तान्त), मत्स्य १०१.१४(सौम्य व्रत), १०१.८१(सोम व्रत – लवणपात्र दान आदि ), मार्कण्डेय १७(सोम का अत्रि से जन्म), वराह १४.४९(पितृगण के सोमाधार तथा चन्द्रमा के योगाधार होने का उल्लेख, अतः श्राद्ध में योगी की नियुक्ति), ३२.१०(सोम द्वारा वृषभ रूप धारी धर्म को पीडित करने का कथन, धर्म की आकृति शशि समान होने का उल्लेख), ३५.१(अत्रि – पुत्र सोम द्वारा अपनी २७ पत्नियों में से रोहिणी के साथ रमण, शाप प्राप्ति, समुद्रमन्थन से पुनः उत्पत्ति), ३५.११(देह में क्षेत्रज्ञ संज्ञक परपुरुष का नाम, जीव का नाम), ३६.७(त्रेतायुग में सोम के राजा जनक होने का उल्लेख), ८१(सोमशिला पर सोम के अवतरण का उल्लेख), १३७.३०(सोम तीर्थ की महिमा, शृगाली व गृध्र का वृत्तान्त), १४०, १४१, १४४, १५४, वामन ९०.११(महेन्द्र तीर्थ में विष्णु का सोमपीथी नाम से वास), वायु २३.७४/१.२३.८२(शिव के मुख से च्युत सोम के जीवों का प्राणदायक पय: बनने का कथन), ५६.२०(इडवत्सर का रूप), ७०.७०(प्रभाकर व भद्रा से प्रभाकारक सोम के जन्म का कथन), ९०(अत्रि के तेज से सोम के जन्म की कथा, तारा हरण आख्यान, बुध का जन्म), ९१.५१(सोम वंश कीर्तन), विष्णु १.१५.५(प्रचेतस गण का कोप शान्त करने के लिए सोम द्वारा मारिषा कन्या प्रदान करना), १.१५.१०(दक्ष के सोम के अंश से युक्त होने का उल्लेख), १.१५.३१(सोम द्वारा मारिषा कन्या के जन्म का वृत्तान्त), विष्णुधर्मोत्तर २.१३२.५(सौम्या शान्ति के वर्ण व अधिदेवता का उल्लेख), शिव ४.८, ४.९.३(व्यभिचारिणी सौमिनी द्वारा अनायास शिव पूजा से उत्तम लोक प्राप्ति की कथा), ७.१.१७.३१(अत्रि व अनसूया के ५ पुत्रों में से एक), ७.२.८.१२(ब्रह्मा से यज्ञार्थ सोम की उत्पत्ति तथा सोम से द्यौ की उत्पत्ति का उल्लेख), स्कन्द १.१.७.३३(सौराष्ट्र में सोमेश्वर लिङ्ग की स्थिति का उल्लेख), २.३.७(बदरी क्षेत्र में सोमकुण्ड का माहात्म्य, अत्रि-पुत्र सोम द्वारा तप से ओषधिपति आदि बनना), ३.१.४९.५५(सोम द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ४.१.१४ + (अत्रि – पुत्र सोम द्वारा तप से वैभव प्राप्ति का वर्णन), ५.१.२८.५६(सोम की अत्रि के तेज से उत्पत्ति, भूमि पर पतन, ब्रह्मा द्वारा रथ में स्थापना, तारा - बुध आख्यान, कुष्ठ से मुक्ति हेतु सोम द्वारा लिङ्ग की स्थापना), ५.२.२६.७(सोमेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, सोम को दक्ष द्वारा क्षय होने का शाप, सोम का अन्तर्हित होना, समुद्र मन्थन से पुन: उत्पत्ति, पुन: अन्तर्हित होना आदि), ५.२.६८(सोमक शूद्र, दुष्ट चरित्र से पिशाच, शाकटायन ब्राह्मण के परामर्श से पिशाचेश्वर लिङ्ग पूजा से मुक्ति), ५.३.१३.४२(सौम्य - १४ कल्पों में से एक), ५.३.८५(दक्षशाप से मुक्ति हेतु सोम द्वारा तप), ५.३.१०३.९६(सोम के वनस्पतिगत होने पर अकरणीय कृत्य), ५.३.१२१(सोम तीर्थ का माहात्म्य, दक्ष के क्षय रोग के शाप से मुक्ति हेतु सोम का चन्द्रहास तीर्थ में तप), ५.३.१३९(सोम तीर्थ का माहात्म्य, सोम द्वारा तप करके नक्षत्र पथ में स्थापित होना), ५.३.१९८.८१(सोमेश्वर में देवी का वरारोहा नाम से वास), ६.६३(सोमेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, दक्ष शाप से मुक्ति पाने के लिए सोम द्वारा ६८ लिङ्गों की स्थापना), ६.८७(सोम प्रासाद का माहात्म्य), ७.१.६+ (सोमेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), ७.१.२०.४४(भद्रा व प्रभाकर - पुत्र, अत्रि से जन्म की कथा, ओषधिपति बनना), ७.१.२४.१४५(सोमवार व्रत का माहात्म्य, घनवाहन - पुत्री गन्धर्वसेना की कुष्ठ से मुक्ति की कथा), ७.१.३०(सोमेश्वर लिङ्ग की पूजा का माहात्म्य), ७.१.१०५.४९(३० में १९वें कल्प का नाम), ७.१.१३४(), ७.२.१४.८४(वस्त्रापथ क्षेत्र में वामन द्वारा सोमनाथ की आराधना), हरिवंश २.६७.५३(शिव के लिए सोम शब्द का प्रयोग), ३.५३.१२(सोम का शरभ व शलभ से युद्ध), महाभारत शल्य ३५, अनुशासन १०२.२९(इन्द्र व गौतम के संवाद के अन्तर्गत सोमलोक को प्राप्त होने वाले मनुष्य के लक्षण ), लक्ष्मीनारायण १.७९(सोम की अत्रि से उत्पत्ति, तारा हरण, बुध का जन्म), १.२०८, १.४८३, १.५८०, २.२२१, ३.३७.५६(सोमवत्सर में ब्रह्मा द्वारा पितरों को उपदेश), ३.१०१.६५, ४.४७, सुश्रुत संहिता चिकित्साध्याय २९.२०(सोमवल्ली की उत्पत्ति के स्थान, सोम के गायत्र, त्रैष्टुभ आदि प्रकार), शौ.अ. ५.२४.७(सोमो वीरुधामधिपतिः), द्र. शान्तिसोम soma सोम-( १) चन्द्रमा । इनके सताईस स्त्रियाँ थीं ( आदि० ६६ ॥ १६ ) । सप्तर्षियों द्वारा पृथ्वी-दोहन के समय ये बछड़ा बने थे ( द्रोण० ६९ ॥ २३(४२) ) । (विशेष देखिये चन्द्रमा । ) (२) भानु नामक अग्नि की तीसरी पत्नी निशा के गर्भ से उत्पन्न दो पुत्रों में से एक। इनके दूसरे भाई का नाम अग्नि है। इनकी बहिन का नाम रोहिणी है । इनके वैश्वानर आदि पाँच भाई और हैं ( वन० २२१ । १५ ) ।
सोमक मत्स्य ५०.१६(सुदास - पुत्र, अजमीढ के पुनर्जन्म का रूप, जन्तु - पिता), १२२.१४(अस्त गिरि के सोमक नाम तथा महत्त्व का कथन ), हरिवंश १.३२, लक्ष्मीनारायण ४.४७सोमिका, कथासरित् ८.६.६८, द्र. भूगोल somaka सोमक-( १) सोमकवंशी क्षत्रियों का समुदाय ( आदि० १२२ ॥ ४० ) || (२) एक प्राचीन राजा; जो यमसभा में रहकर सूर्यपुत्र यम की उपासना करते हैं (सभा० ८ । ८ ) । ये पाञ्चालदेश के प्रसिद्ध दानी राजा थे। इनके पिता का नाम सहदेव था ( वन० १२५ । २६ ) । सौ पुत्रों की प्राति के लिये, अपने इकलौते पुत्र की बलि देकर, इनके द्वारा यज्ञ का सम्पादन और पुत्रों की प्राप्ति ( वन० १२८ ॥ २-७ ) । इनका अपने पुरोहित के साथ समान रूप से नरक और पुण्य लोकों का भोग भोगकर छूटना ( वन० १२८ ॥ ११-१८ )। इन्होंने गोदान करके स्वर्ग प्राप्त किया था (अनु० ७६ ॥ २५-२७ ) । इन्होंने जीवन में कभी मांस नहीं खाया था ( अनु० ११५ । ६ ३ ) ।।
सोमकान्त गणेश १.१.२३(राजा सोमकान्त के कुष्ठग्रस्त होने की कथा), १.७.१०(सोमकान्त नृप के पूर्व जन्म का वृत्तान्त : पूर्व जन्म में कामन्द नामक दुष्ट वृत्ति वैश्य पुत्र, कान्त प्रासाद निर्माण से सोमकान्त बनना), २.१५१.१(गणेश पुराण श्रवण से सोमकान्त का कुष्ठ से मुक्त होना ), somakaanta
सोमकीर्ति भविष्य ३.३.३२(राजा लहर के १६ पुत्रों में से एक, कौरवांश), आदि० ६७ ॥ ९९; आदि० ११६ । ८(धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक ) ।
सोमगिरि-एक पर्वतः, जो सायं-प्रातः स्मरण करने योग्य है (अनु० १६५ ॥ ३३ ) ।
सोमचन्द्र पद्म ६.१४१(विश्वमोहन राजा के पुत्र सोमचन्द्र द्वारा अश्व की चोरी होने पर माण्डव्य का शूली पर आरोपण ), लक्ष्मीनारायण ३.८९.७३ somachandra
सोमतीर्थ-(१) कुरुक्षेत्र की सीमा के अन्तर्गत एक प्राचीन तीर्थ, जो जयन्ती में है । वहाँ स्नान करने से मनुष्य को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है ( वन० ८३ ॥ १९ )। (२) कुरुक्षेत्र की सीमा के अन्तर्गत एक प्राचीन तीर्थ, जिसमें स्नान करने से सोमलोक की प्राप्ति होती है ( वन० ८३ ॥ ११४-११५, १८५ ) ||
सोमदत्त गर्ग ७.२०.३२(सोमदत्त का प्रद्युम्न - सेनानी चित्रभानु से युद्ध), नारद १.९.७७(सोमदत्त विप्र का गुरु गौतम की अवज्ञा से ब्रह्मराक्षस बनना, कल्माषपाद/सौदास को गुरु की महिमा का कथन, गङ्गा जल से उद्धार), भविष्य ३२४, ३.२.९(धर्मदत्त - पुत्र, कामालसा से रति की इच्छा), वराह ३६, १३७.६८(ब्रह्मदत्त - पुत्र, शृगाली व गृध्र के वध की कथा), वा.रामायण ०.२(गौतम - शिष्य सोमदत्त ब्राह्मण द्वारा गुरु के अनादर से राक्षसत्व प्राप्ति, गर्ग से रामायण कथा श्रवण से उद्धार, सुदास उपनाम ), कथासरित् १.२.३०, १.७.१०८, ३.६.८, ६.४.७९, ६.७.३७, somadatta सोमदत-कुरुवंशी महाराज प्रतीप के पौत्र एवं वाहीक के पुत्र । इनके भूरि, भूरिश्रवा तथा शल नाम के तीन पुत्र थे । ये अपने तीनों पुत्रों के साथ द्रौपदी के स्वयंवर में पधारे थे ( आदि० १८५ ॥ १४-१५)। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भी इनका शुभागमन हुआ था ( सभा० ३४ । ८ ) । देवकी के स्वयंवर के समय शिनि के साथ इनका बाहुयुद्ध तथा शिनि का इन्हें पटककर लात मारना एवं इनकी चुटिया पकड़ना ( द्रोण० १४४ ॥ ११-१३ ) । शिनि के छोड़ देने पर इनकी तपस्या और बदला लेने के लिये वर एवं पुत्र की प्राप्ति ( द्रोण० १४४ ॥ १५-१९)। सात्यकि के साथ युद्ध में इनका पराजित होना ( द्रोण० १५६ ॥ २१-२९ ) । सात्यकि एवं भीमसेन के प्रहार से मूछिंत होना (द्रोण० १५७ ॥ १०-११ ) । सात्यकि द्वारा इनका वध ( द्रोण० १६२ ॥ ३३)। इनके शरीर का दाह-संस्कार ( स्त्री० २६ ॥ ३३ ) । धृतराष्ट्र द्वारा इनका श्राद्ध ( आश्रम० ११ । १७ ) । व्यासजी के आवाहन करने पर कुरुक्षेत्र में मरे हुए कौरव वीरों के साथ ये भी गङ्गाजल से प्रकट हुए थे (आश्रम० ३२ ॥ १२)। महाभारत में आये हुए सोमदत्त के नाम-बाहीक, बाह्लीकात्मजः कौरवः, कौरवेयः कौरव्यः, कुरुपुङ्गव आदि।
सोमदा वा.रामायण १.३३(उर्मिला - पुत्री, चूली ब्रह्मचारी से ब्रह्मदत्त पुत्र की प्राप्ति),
सोमधेय–एक पूर्वभारतीय जनपद, जहाँ के निवासियों को भीमसेन ने पराजित किया था ( सभा० ३० ॥ १० ) ।
सोमन लक्ष्मीनारायण २.२२१.७४
सोमनाथ नारद १.६६.११३(सोमेश की शक्ति खेचरी का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.३५.५४(चन्द्रबिम्बमय शाला में सोमनाथ की स्थिति का कथन), भविष्य ३.४.२३.१०५(यज्ञांश सोमनाथ द्वारा सौराष्ट्र में राज्य करने का कथन), स्कन्द १.२.४८(सोमनाथ का माहात्म्य, ऊर्जयन्त व प्रालेय की चोरों से रक्षा), ५.३.८५ (सोमनाथेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, सोम की दक्ष के शाप से मुक्ति, कण्व की ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति), ७.१.७(सप्तम कल्प में शिव नाम), ७.१.२४(चन्द्रमा द्वारा तप से सोमनाथेश्वर की स्थापना ), लक्ष्मीनारायण १.५३६, somanaatha/ somanatha सोमपद-एक तीर्थ, जहाँ माहेश्वर पद में स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है ( वन० ८४ ॥ ११९)।
सोमपा गरुड १.८९.४१(सोमपा पितरों द्वारा उदीची दिशा की रक्षा, आज्यपा द्वारा प्रतीची आदि), भविष्य ३.४.२२(मुकुन्द - शिष्य, जन्मान्तर में मानसिंह), शिव २.२.३.५७(क्रतु ऋषि से सोमप पितरों की उत्पत्ति का कथन), हरिवंश १.१८.६७(सोमपा पितर गण के वंश का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण ३.४१.८९, somapaa सोमप-( १) स्कन्द का एक सैनिक (शल्य० ४५ ॥७०)। (२) एक सनातन विश्वेदेव (अनु० ९१ ॥ ३४ ) । सोमपा-सात पितरों में से एक । इनकी चार मूर्त पितरों में गणना है। इनके तृप्त होने से सोम देवता की तृप्ति होती है (सभा० ११ ॥ ४७-४८ ) । ये सभी पितर ब्रह्माजी की सभा में उपस्थित हो प्रसन्नतापूर्वक उनकी उपासना करते हैं (सभा० ११ ॥ ४९ ) । सोमप्रभा कथासरित् ३.३.७०, ६.२.१०१, ६.३.१६, ६.५.१, ६.५.५७, ६.८.१३१, ७.२.११२, १०.३.६१, १२.१२.७, १७.१.२२
सोमप्ररु देवीभागवत ४.२२
सोमयाग ब्रह्मवैवर्त्त ४.६०.५५(सोमयाग की संक्षिप्त विधि), महाभारत शान्ति १६५.५(सोमयाग के अधिकारी पुरुष के लक्षण), लक्ष्मीनारायण २.२४४+ (पञ्चदिवसीय सोमयाग की विधि का वर्णन ), २.२४८ somayaaga/ somayaga
सोमराज वराह ७०
सोमवर्चा-( १) एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ ॥ ३३)। (२)एक सनातन विश्वेदेव (अनु० ९१ ॥ ३६) |
सोमवान् लक्ष्मीनारायण १.४४९
सोमवार स्कन्द ३.३.८
सोमशर्मा पद्म २.१, २.४+ (शिवशर्मा - पुत्र, पिता द्वारा पितृभक्ति की परीक्षा, मृत्यु पर हिरण्यकशिपु- पुत्र प्रह्लाद बनना), २.११+ (सुमना - पति, पुत्र प्राप्ति की कामना पर पत्नी द्वारा पुत्रों के प्रकारों का कथन, ब्रह्मचर्य आदि का उपदेश), २.१७+ (वसिष्ठ द्वारा सोमशर्मा को पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन, सोमशर्मा द्वारा तप, विष्णु की स्तुति, सुव्रत नामक पुत्र की प्राप्ति), ६.६०(सोमशर्मा ब्राह्मण द्वारा चन्द्रभागा व शोभन का मिलन कराना), ब्रह्म १.१२०(देवशर्मा - पुत्र सोमशर्मा द्वारा लोभ व मोह से आग्नीध्र कर्म करने से ब्रह्मराक्षस बनना, जागरण फल दान से मुक्ति), लिङ्ग १.२४.१२१(२७वें द्वापर में मुनि), वराह १२५(सोमशर्मा द्वारा माया का रहस्य जानने की इच्छा, निषादी स्त्री बनना, पुन: ब्राह्मण बनना), १३९(सोमशर्मा द्वारा अविधि पूर्वक पाञ्चरात्र यज्ञ करने से ब्रह्मराक्षस बनना), वामन ७९, शिव ३.५, वायु २३.२१५(२७वें द्वापर में शिव - अवतार), स्कन्द ५.३.२०९.६५, लक्ष्मीनारायण १.२२२.१५(राजा नृग द्वारा गौ दान के संदर्भ में सोमशर्मा ब्राह्मण द्वारा दान की गई गौ को पुन: दान में प्राप्त करना ), १.२२९, १.५७०, कथासरित् १.६.८, १८.५.१०४, somasharmaa
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