PURAANIC SUBJECT INDEX पुराण विषय अनुक्रमणिका (Suvaha - Hlaadini) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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Puraanic contexts of words like Hoohoo, Hridaya / heart, Hrisheekesha, Heti, Hema, Heramba, Haihai, Hotaa etc. are given here. हुम्ब ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९५(भण्डासुर - सेनानी, नित्यक्लिन्ना द्वारा वध ) हुलुमल्ल ब्रह्माण्ड ३.४.२५.९५(भण्डासुर - सेनानी, भेरुण्डा द्वारा वध ) हुहुक स्कन्द १.२.६२.३२(क्षेत्रपालों के ६४ प्रकारों में से एक ) हूण लक्ष्मीनारायण ३.२०९.२( हूति द्र. देवहूति हूहू गर्ग ४.२१, वामन ८४.६४(देवल ऋषि के शाप से हूहू को ग्राह रूप प्राप्ति ), विष्णु ४.१.६८, स्कन्द ५.१.६३.१००(, कथासरित् ८.२.३५१, द्र. हाहा hoohoo/ huuhuu/ huhu हृङ्डकायिनी लक्ष्मीनारायण २.४२ ह्रद पद्म १.५९, ६.१४४, ६.१६४, स्कन्द १.२.४२, ७.१.२१, ७.४.९, महाभारत द्रोण १०१.२६, शल्य १.११, २९.५१, ३०.५३, स्त्री २७.१५, शान्ति ३०१.६४, अनुशासन १२.९, १३दाक्षिणात्य पृ. ५४७६, ५८, लक्ष्मीनारायण १.२२६, १.५५३, ३.३५.५१, द्र. शतहृदा hrada ह्रदय अग्नि २१४.३१(ब्रह्मणो हृदये स्थानं कण्ठे विष्णुः समाश्रितः । तालुमध्ये स्थितो रुद्रो ललाटे तु महेश्वरः ॥), गरुड २.३०.५६/२.४०.५६(मृतक के ह्रदय में रुक्म देने का उल्लेख - कर्पूरागुरुधूपैश्च शुभैर्माल्यैः सुगन्धिभिः । परिधानं पट्टसूत्रं हृदये रुक्मकं न्यसेत् ॥ ), देवीभागवत ७.३८.३०(ह्रदय क्षेत्र में हृल्लेखा देवी का वास - ज्ञानिनां हृदयाम्भोजे हृल्लेखा परमेश्वरी ॥), ब्रह्माण्ड १.१.५.७४(ब्रह्मा के ह्रदय से भृगु की सृष्टि का उल्लेख - भृगुश्च हृदयाज्जज्ञे ऋषिः सलिलयोनिनः ॥), भागवत २.१०.३०(ह्रदय से मन, चन्द्र, संकल्प, काम की उत्पत्ति का उल्लेख - निदिध्यासोः आत्ममायां हृदयं निरभिद्यत । ततो मनः ततश्चंद्रः सङ्कल्पः काम एव च ॥), ६.४.४६(तप के भगवान का ह्रदय होने का उल्लेख - तपो मे हृदयं ब्रह्मंस्तनुर्विद्या क्रियाकृतिः। अङ्गानि क्रतवो जाता धर्म आत्मासवः सुराः॥), ११.१७.१४(हृदय से ब्रह्मचर्य की उत्पत्ति का उल्लेख), ११.११.४४(ह्रदय आकाश में वायु में मुख्यधी रूपी तोय आदि का कथन), मत्स्य ५१.२८(अग्नि, मन्युमान्- पिता - हृदयस्य सुतो ह्यग्नेर्जठरेऽसौ नृणां पचन्। मन्युमाञ्जठरश्चाग्निर्विद्धाग्निः सततं स्मृतः ॥ ), २४८.७२(यज्ञवराह के दक्षिणा हृदय होने का उल्लेख - प्राग्वंशकायो द्युतिमान् नानादीक्षाभिरन्वितः। दक्षिणा हृदयो योगी महासत्रमयो महान् ।।), मार्कण्डेय ६३.२३/६०.२३(मनोरमा कन्या द्वारा स्वरोचि को अस्त्रग्राम का ह्रदय देने का कथन - हृदयं सकलास्त्राणामशेषरिपुनाशनम् । तदिदं गृह्यतां शीघ्रमशेषास्त्रपरायणम्॥), वायु ६.२१(वराह ह्रदय का दक्षिणा से साम्य - दक्षिणाहृदयो योगी महासत्रमयो विभुः।), स्कन्द ४.१.२.९७(पुराणों की हृदय से उपमा - श्रुतिस्मृती तु नेत्रे द्वे पुराणं हृदयं स्मृतम् ।।), ४.२.७२.६०(ह्रदय की धरित्री देवी द्वारा रक्षा - वक्षःस्थलं स्थलचरी हृदयं धरित्री कुशिद्वयं त्ववतु नः क्षणदाचरघ्नी ।।), ७.२.१२.३९(गगने दृश्यते सूर्यो हृदये दृश्यते हरः ॥), हरिवंश ३.७१.५०(वामन के विराट रूप की कल्पना - हदयं भगवान्ब्रह्मा पुंस्त्वं वै विश्वतोमुनिः ।।), महाभारत वन ३१३.६१(अश्म के हृदयरहित होने का उल्लेख, यक्ष-युधिष्ठिर संवाद - अश्मनो हृदयं नास्ति नदी वेगेन वर्धते ॥), योगवासिष्ठ ६.२.१४०(ह्रदय की कल्पना ), द्र. सुह्रदय hridaya ह्रदया ब्रह्म १.१५(अश्वी, भोज का वाहन), हरिवंश १.३९ हृदीक गर्ग १.५.२४(हृदीक के कुबेर का अंश होने का उल्लेख ), मत्स्य ४४ hrideeka/ hridika हृल्लेखा देवीभागवत ७.३८(हृल्लेखा देवी का ह्रदय कमल पर वास), हृषीक शिव ३.४, हृषीकेतु पद्म ६.२०.४०(सगर के अवशिष्ट ४ पुत्रों में से एक), हृषीकेश नारद १.६६.८८(हृषीकेश की शक्ति हर्षा का उल्लेख), पद्म २.९८.६१(हृषीकों के बिना विषयों का भोक्ता), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१२.२०(हृषीकेश से अधरोष्ठ की रक्षा की प्रार्थना), भागवत ६.८.२१(हृषीकेश द्वारा दोष व अर्धरात्रि में रक्षा की प्रार्थना), १०.६.२४(हृषीकेश से इन्द्रियों की रक्षा की प्रार्थना), वराह १.२७(हृषीकेश से मुख की रक्षा की प्रार्थना), १४६(हृषीकेश की निरुक्ति), वामन ९०.२९(लोह दण्ड में विष्णु का हृषीकेश नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.४(हृषीकेश से मन की रक्षा की प्रार्थना), स्कन्द २.२.३०.७९(हृषीकेश से उत्तर दिशा की रक्षा की प्रार्थना), २.४.९टीका (एकाङ्गी - पिता, आभीर, कन्या के बहिष्कार व स्वीकार की कथा), ४.१.१९.११५(वसिष्ठ द्वारा ध्रुव को हृषीकेश की आराधना का निर्देश), ४.१.२०.९(हृषीकेश शब्द की निरुक्ति), ४.१.२९.१६७(हृषीकेशी : गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.२.६१.२२८(हृषीकेश की मूर्ति के लक्षण), ५.३.१४९.११, ६.२१३.९०(हृषीकेश से बाहु देश की रक्षा की प्रार्थना), ७.३.१३(हृषीकेश का माहात्म्य, अम्बरीष द्वारा हृषीकेश की आराधना, क्रिया योग उपदेश की प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१०(हृषीकेश की पत्नी अपराजिता का उल्लेख), १.५५३, २.२६१.३४(हृषीकेश की निरुक्ति ), ?दक्ष के शिर छेदन का प्रयत्न करनेv का उल्लेख ) hrisheekesha/ hrishikesha हृष्ट गर्ग ७.३२.१०(हिरण्याक्ष - पुत्र, शकुनि आदि भ्राता, प्रद्युम्न - सेनानी वृक द्वारा वध), हेति नारद २.४७.९(ब्रह्मा - पुत्र, विष्णु द्वारा गदा से शिर भञ्जन), ब्रह्म २.५५(कपोती, मृत्यु की दौहित्री, अनुह्राद -पत्नी, यम - उपासक, उलूक से युद्ध, अग्नि की शरण लेने पर शान्ति का वृत्तान्त), ब्रह्माण्ड १.२.२३.५(हेति - प्रहेति का सूर्य रथ में वास), भागवत ४.५.२२(वीरभद्र द्वारा हेति से दक्ष के सिर को काटने का प्रयत्न, असफलता), ८.१०.२८(हेति का वरुण से, प्रहेति का मित्र से युद्ध), वराह १०.६९(हेति - प्रहेति : स्वायम्भुव मनु - पुत्र, सुकेशि व मिश्रकेशी कन्याएं), वायु ६९.१२७(हेति व प्रहेति : ब्रह्मधना - पुत्र, सूर्य - अनुचर, पुत्रों के नाम), ६९.१२९(लङ्कु - पिता), १०९.११/२.४७.११(हरि द्वारा हेति असुर के वध हेतु गदा की प्राप्ति), विष्णुधर्मोत्तर १.१९८(हेति वंश), स्कन्द १.२.६.६६(सब कार्यों में हेति शब्द के विगर्हित होने का उल्लेख, कार्यों में शिलापात होने का उल्लेख), महाभारत आदि ??(अग्नि की हेतियों द्वारा सर्वप्राणियों के दहन का उल्लेख), २३१.१०(अग्नि की ७ हेतियां/ज्वालाएं होने का उल्लेख), वा.रामायण ७.४.१४(राक्षस, प्रहेति - भ्राता, भया - पति, विद्युत्केश - पिता), लक्ष्मीनारायण १.५३२.१३हेति - प्रहेति, १.५४५.३६(राजा नृग के शरीर से निर्गत एकादशी कन्या द्वारा हेति रूपी द्वादशी से दस्युओं का नाश करना ), वास्तुसूत्रोपनिषद ३.९(शिला द्रवणार्थ हेति विद्या), द्र. प्रहेति heti हेतु वायु ५९.१३३/१.५९.१०८(हेतु शब्द की निरुक्ति), स्कन्द ४.२.९७.१७४(हेतुकेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ) hetu हेम गणेश २.१८.१०(हेम दैत्य का महोत्कट गणेश के वध हेतु काशी में गणक रूप में आगमन, गणेश द्वारा मुद्रिका से हेम का वध), २.१०८.८, २.१०९.२४(गणेश द्वारा व्याघ्र| रूप धारी हेम राक्षस के मुख को विकृत करना आदि), ब्रह्माण्ड १.२.१९.५४(हेम पर्वत के वेणु मण्डल वर्ष का उल्लेख), भविष्य ४.१९८(हेमाचल दान विधि), शिव ३.५हेमकञ्चुक, स्कन्द २.७.१०(हेमकान्त : कुशकेतु - पुत्र हेमकान्त द्वारा त्रित मुनि को छत्र दान से ब्रह्महत्या से मुक्ति), योगवासिष्ठ ३.११९(हेम ऊर्मि), लक्ष्मीनारायण २.१४०.१४(हैमक प्रासाद के लक्षण ), ३.३३.८७, कथासरित् ७.९.२०१हेमपुर, hema हेमकण्ठ गणेश १.१.३६(राजा हेमकान्त व सुधर्मा - पुत्र, पिता के कुष्ठग्रस्त होने पर राज्य की प्राप्ति), २.१५२.३(विमानारूढ सोमकान्त नृप द्वारा विमान से उतर कर स्वपुत्र हेमकण्ठ के दर्शन ) hemakantha हेमकुण्डल गर्ग ७.४०.३१(हेमकुण्डल विद्याधर का ककुत्स्थ के शाप से नक्र / मकर बनना ), पद्म ३.३०, hemakundala हेमकूट कूर्म १.४८(हेमकूट का वर्णन), गर्ग ७.२६, देवीभागवत ७.३०(हेमकूट पर्वत पर मन्मथा देवी के वास का उल्लेख), पद्म ५.४७(राम के यज्ञीय अश्व का हेमकूट पर्वत पर आगमन, गात्र स्तम्भन व मुक्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१७.३३(हेमकूट में गन्धर्वों - अप्सराओं के वास का उल्लेख), वामन ९०.२१(हेमकूट पर विष्णु का हिरण्याक्ष नाम), स्कन्द ५.३.१९८.८८, वा.रामायण ६.३०.३२(वानर, वरुण - पुत्र ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.२७, कथासरित् ८.३.८६, hemakoota/ hemakuuta/ hemakuta हेमगर्भ स्कन्द ७.१.२३(चन्द्रमा के मन्त्री हेमगर्भ द्वारा प्रभास क्षेत्र में यज्ञ अनुष्ठान के लिए उद्योग ) hemagarbha हेमनक स्कन्द २.४.९.२१ हेमन्त विष्णुधर्मोत्तर १.२४५(राम द्वारा हेमन्त ऋतु का वर्णन), स्कन्द ५.३.१०३.६२, वा.रामायण ३.१६(लक्ष्मण द्वारा पञ्चवटी में हेमन्त ऋतु का वर्णन ), लक्ष्मीनारायण १.४३२, ३.१००.१४६, hemanta हेमपति भविष्य ३.२.४ हेमप्रभ कथासरित् ७.१.२२, १०.३.११, १०.१०.१३७, १२.५.२३७, १४.३.५८, हेमप्रभा पद्म ४.१५(वल्लभ - पत्नी, राजासक्त, एकादशी व्रत से उद्धार), हेममाली गर्ग ४९, ५.१०.१८(कुबेर वन में हेममाली माली का शिव के वरदान से कृष्ण काल में सुदामा माली बनना), ७.२४, पद्म ६.५२(यक्ष, विशालाक्षी - पति, पत्नी में आसक्ति से कुबेर का शाप ), वा.रामायण ७.४, लक्ष्मीनारायण १.२५२, १.३११.३८हेममालिनी hemamaalee/ hemamali हेममुकुट गर्ग ७.२३ हेमरथ स्कन्द ३.३.१३(मगधराज हेमरथ द्वारा दशार्णराज वज्रबाहु का बन्धन, भद्रायु द्वारा मुक्ति, हेमरथ का बन्धन व मुक्ति ), लक्ष्मीनारायण ३.३५.१४, hemaratha हेमलता कथासरित् ९.१.१२० हेमलम्ब स्कन्द २.४.३५.२०(मास ) हेमवालुका कथासरित् १४.४.१५४ हेमशालायन लक्ष्मीनारायण २.९७ हेमशैल द्र. भूगोल हेमसुधा लक्ष्मीनारायण ४.३३ हेमा नारद १.५०.३६, वा.रामायण ४.५१(मय की हेमा अप्सरा में आसक्ति, हेमा द्वारा ब्रह्मा से गुफा रूपी भवन की प्राप्ति), ७.१२(हेमा अप्सरा द्वारा मय से मन्दोदरी, मायावी व दुन्दुभि सन्तान की उत्पत्ति ), लक्ष्मीनारायण ४.२, hemaa हेमाङ्ग स्कन्द २.१.१६(हेमाङ्ग द्वारा श्रुतदेव के पादोदक सेवन से जाति स्मरण, पुण्य प्रदान से गोधिका योनि से उद्धार), २.७.६(जलदान के अभाव में हेमाङ्ग द्वारा गृहगोधा आदि योनियों की प्राप्ति, श्रुतदेव द्वारा उद्धार ) hemaanga/ hemanga हेमाङ्गद गणेश १.५३.१९(कर्ण नगर में हेमाङ्गद - पुत्र चन्द्राङ्गद राजा का वृत्तान्त), गर्ग ७.१२.१(उशीनर देश के राजा हेमाङ्गद द्वारा प्रद्युम्न को समर्पण), १०.१६(चम्पावती - राजा, अनिरुद्ध सेना से युद्ध ), स्कन्द २.७.६, लक्ष्मीनारायण १.४०२, hemaangada/ hemangada हेमाङ्गी पद्म ६.२२०(वीरवर्मा राजा की पत्नी, पूर्व जन्म में मोहिनी वेश्या, प्रयाग में उद्धार, हरि व ब्रह्मा की स्तुति ) hemaangee/ hemangi हेमायतन लक्ष्मीनारायण २.२१५.५ हेरम्ब गणेश २.३७.१९(हेरम्ब मूर्ति का स्वरूप व माहात्म्य), २.८३.१७(सिन्धु वध हेतु उत्पन्न षड्भुज गुणेश को हिमवान् द्वारा प्रदत्त नाम), २.८५.२३(हेरम्ब गणेश से जठर की रक्षा की प्रार्थना), पद्म ६.२२२(हेरम्ब ब्राह्मण की काञ्ची तीर्थ के प्रभाव से मुक्ति), स्कन्द १.१.१०(गजारूढ हेरम्ब की शिव के त्रिशूल से मृत्यु, पुन: सञ्जीवन), १.३.२.२२, ३.३.१२.१७(हेरम्ब - पिता शिव से नाभि की रक्षा की प्रार्थना), ४.२.५७.८४(हेरम्ब विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ६.१४२(हेरम्ब गणपति का माहात्म्य), ७.१.३८(ब्रह्मा का कृतयुग में हेरम्ब रूप ), कथासरित् ९.५.१५८, heramba हेरुक अग्नि ९६ हेली भविष्य ३.४.९(हेली ब्राह्मण द्वारा सूर्य की आराधना का वृत्तान्त), स्कन्द २.४.७टीका (हेलिक द्विज के दुष्ट पुत्रों में से एक का पिशाच बनना ) helee/ heli हैहय देवीभागवत ६.१७(हैहय वंशी क्षत्रियों द्वारा धन लोभ से भृगु वंशी ब्राह्मणों के नाश की कथा), ६.२०+ (हय रूपी विष्णु व वडवा रूपी लक्ष्मी का पुत्र, तुर्वसु/हरिवर्मा द्वारा पालन, एकवीर उपनाम, रैभ्य - कन्या एकावली की राक्षस से रक्षा व विवाह, कृतवीर्य - पिता), नारद १.१.७, १.७.३२(हैहय राजाओं द्वारा असूया वृत्ति वालेv राजा बाहु को पराजित करना), पद्म १.११, ब्रह्म १.११, ब्रह्माण्ड २.३.२६, २.३.६९.४(शतजित - पुत्र, धर्मनेत्र - पिता), मत्स्य ४३, वायु ९३, विष्णु ४.११.७(शतजित - पुत्र, यदु ), विष्णुधर्मोत्तर १.१७, स्कन्द २.१.३७, ५.२.११.२२, हरिवंश १.२९.७०, महाभारत अनुशासन ३४.१७, वा.रामायण १.७०, लक्ष्मीनारायण ३.९२.२, haihaya होता देवीभागवत ३.१०.२१(देवदत्त के पुत्रेष्टि यज्ञ में बृहस्पति के होता होने का उल्लेख), ११.२२.३१(प्राणाग्निहोत्र में वाक् होता, प्राण उद्गाता, चक्षु अध्वर्यु, मन ब्रह्मा आदि होने का उल्लेख), पद्म १.३४.१०(होता चतुष्टय में होता, मैत्रावरुण, अच्छावाक व ग्रावस्तुत का उल्लेख), १.३४.१५(स्वायम्भुव मनु/ब्रह्मा के यज्ञ में भृगु होता, वसिष्ठ मैत्रावरुण, क्रतु अच्छावाक तथा च्यवन के ग्रावस्तुत होने का उल्लेख), १.३४.२१(होता द्वारा दक्षिणा में प्राची दिशा प्राप्त करने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड २.३.४७.४७(परशुराम के वाजिमेध में विश्वामित्र के होता होने का उल्लेख), मत्स्य ४५.३०(प्रतिहोतागण : अक्रूर व रत्न के पुत्र), १६७.७(यज्ञ पुरुष की बाहुओं से होता व अध्वर्यु की सृष्टि, अन्य अङ्गों से अन्य ऋत्विजों की सृष्टि), वराह २१.१६(दक्ष यज्ञ में पुलस्त्य के होता बनने का उल्लेख), ९९.८६(होता पुरोहित द्वारा स्वर्गवासी राजा विनीताश्व को क्षुधा मुक्ति का उपाय बताना), स्कन्द ५.१.२८.७७(चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ में अत्रि के होता, भृगु के अध्वर्यु आदि होने का कथन), ५.१.६३.२४१(बलि के अश्वमेध में भृगु? के होता, ब्रह्मा के ब्रह्मा आदि होने का कथन), ५.३.१९४.५५(नारायण व श्री के विवाह में धर्म व वसिष्ठ द्वारा होत्र कर्म करने का उल्लेख), ६.५.५(त्रिशङ्कु के यज्ञ में शाण्डिल्य के होता होने का उल्लेख), ६.१८०.३२(ब्रह्मा के अग्निष्टोम याग में भृगु आदि का होतागण के रूप में उल्लेख), ६.१८०.३५(होता के रूप में पाराशर का उल्लेख), ७.१.२३.९३(ब्रह्मा/चन्द्रमा? के यज्ञ में गुरु के होता होने का उल्लेख), ७.१.२३.९७(ब्रह्मा/चन्द्रमा के यज्ञ में शुक्र के होता होने का उल्लेख), हरिवंश ३.१०.६(श्री हरि की बाहुओं से होता व अध्वर्यु आदि की सृष्टि का कथन), महाभारत आश्वमेधिक २१.२(दश होताओं का कथन), २२(सप्त होताओं का वर्णन), २३(पञ्च होताओं का वर्णन), २५(चातुर्होत्र विधान का वर्णन), २५.१५(कर्ता के होता होने का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.४४०.९६(धर्म के यज्ञ में अत्रि व कश्यप के होता होने का उल्लेख), १.५०९.२६(ब्रह्मा के सोमयाग के ३ होताओं के नाम), २.१०६.४९(राजा दक्षजवंगर के वैष्णव याग में होमायन के होता होने का उल्लेख), २.१२४.१२(पत्नीव्रत द्विज के यज्ञ में होताओं व उपहोताओं के रूप में सनकादिकों, योगेश्वरों, सिद्धों, कपिलादि नारायणों का उल्लेख), ३.३५.११३(राजसूय में होता द्वारा वर्तुल मालिका दक्षिणा रूप में प्राप्त करने का उल्लेख), ३.१७४.१२(४ होताओं करण, कर्म, कर्ता व मुक्त का उल्लेख व इनकी व्याख्या), ४.८०.१५(राजा नागविक्रम के सर्वमेध यज्ञ में धारायण के होता व अलवायन के प्रतिहोता होने का उल्लेख ) hotaa
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