PURAANIC SUBJECT INDEX पुराण विषय अनुक्रमणिका (Suvaha - Hlaadini) Radha Gupta, Suman Agarwal & Vipin Kumar
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| Puraanic contexts of words like Himsaa / Hinsaa / violence, Himaalaya / Himalaya, Hiranya, Hiranyakashipu, Hiranyagarbha, Hiranyaaksha, Hunkaara etc. are given here. Esoteric aspect of Hiranyakashipu हाहा गणेश २.९.२(हाहा हूहू आदि का कश्यप के आश्रम में आगमन, महोत्कट गणेश द्वारा पञ्चमूर्ति को नष्ट करना व स्वयं को पञ्चमूर्ति रूप में प्रकट करना), विष्णु ४.१.६८, विष्णुधर्मोत्तर १.१९३(हाहा - हूहू गन्धर्वों के संदर्भ में गज - ग्राह का आख्यान ), स्कन्द ५.१.६३.१००, लक्ष्मीनारायण २.५.८०हाहाकार, कथासरित् ८.२.३५०, haahaa/ haha हिंसा अग्नि २०, ब्रह्माण्ड ३.४.६.३६(न्यायोचित हिंसा का कथन), लिङ्ग १.७८(हिंसा के प्रकार व हिंसा निषेध), वायु ५७.९२(उपरिचर वसु द्वारा हिंसा युक्त यज्ञ का समर्थन), विष्णुधर्मोत्तर ३.२५२(हिंसा के दोष), ३.२६८(हिंसा के दोष ), महाभारत शान्ति २७२, लक्ष्मीनारायण १.५४३.७२, ३.९०.४२ himsaa/ hinsaa हिक्का अग्नि २१४.१६(संवत्सर में ऊनरात्र के हिक्का होने का उल्लेख), हिङ्गुल लक्ष्मीनारायण १.५१५.८९, १.५१५.९५, हिडिम्ब स्कन्द १.२.६०, हरिवंश ३.१२१(हंस व डिम्भक - सेनानी), ३.१२६(हिडिम्ब की देह का वर्णन, हिडिम्ब का वसुदेव व उग्रसेन से युद्ध, बलराम द्वारा हिडिम्ब का वध ) hidimba हिता स्कन्द ५.३.१५९.४५(शरीर की ७२ सहस्र नाडियों का नाम ), लक्ष्मीनारायण ४.३६हिताञ्जलि, द्र. प्रहित hitaa हिम नारद १.९०.७६(हिम तोय द्वारा नृप प्राप्ति का उल्लेख), स्कन्द ४.२.६९.१३१(हिमस्येश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), महाभारत वन ३१३.६७, hima हिमालय कूर्म १.१२.६२(हिमालय द्वारा पार्वती के विराट् रूप के दर्शन, सहस्रनामों द्वारा स्तुति), देवीभागवत ७.३०(हिमालय पर्वत पर भीमा देवी का वास), ७.३२+ (परमेश्वरी से तन्मात्राओं का क्रमश: प्रस्फुटन, हिमालय द्वारा माया के रहस्य का श्रवण, परमेश्वरी के विराट् रूप का दर्शन), पद्म १.६, ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१७४(हिमालय का जाम्बवान् रूप में अवतरण), ब्रह्माण्ड १.२.१७.३३(हिमवान् पर्वत पर राक्षस - पिशाच - यक्षों के वास का उल्लेख), २.३.२२(परशुराम द्वारा हिमालय की शोभा का वर्णन), मत्स्य १३, ११७+ (हिमालय की शोभा का वर्णन, पुरूरवा का आगमन), वराह २२, वामन ५७.६७(हिमालय द्वारा स्कन्द को २ गण भेंट), ९०.८(हिमाचल में विष्णु का शूलबाहु नाम से वास), विष्णुधर्मोत्तर १.१५०(पुरूरवा द्वारा हिमालय का दर्शन), शिव २.३.१(हिमालय का मेना से विवाह), २.३.२.२८(हिमालय के विष्णु का अंश होने का उल्लेख), २.५.९, स्कन्द ४.२.६६(हिमालय द्वारा काशी में वरणा तट पर शैलेश्वर लिङ्ग की स्थापना), ५.३.१९८.६८, ५.३.१९८.८५, ६.९, ६.२४५, ७.१.२४, हरिवंश १.६.४१(पृथ्वी रूपी गौ के दोहन में हिमालय के वत्स बनने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.२५.२३(नियति के कान में अस्थि मुद्रिका रूपी हिमालय), लक्ष्मीनारायण २.१४०.२६हिमवान्, ४.२.७८(बदर नृप द्वारा चन्द्रकान्त मणि का जल में प्रक्षेप करनेv से हिमगिरि की उत्पत्ति का वृत्तान्त), ४.२.९०(हिमालय पर ऋषियों मुनियों आदि के निवास के कारण का वर्णन ), कथासरित् ४.२.१६, himaalaya/ himalaya हिरण्मय गर्ग ७.२९(हिरण्मय वर्ष में वानरों का वास, प्रद्युम्न की विजय), देवीभागवत ८.१०(हिरण्मय वर्ष में अर्यमा द्वारा कच्छप रूप की आराधना), भागवत ५.२.१९(आग्नीध्र के ९ पुत्रों में से एक, श्यामा - पति), वराह ८४, वायु ४५.६(हिरण्मय वर्ष का वर्णन), लक्ष्मीनारायण २.१४०.१०(हिरण्मय प्रासाद के लक्षण ), ४.१०१.१०७हिरण्मयी hiranmaya हिरण्य अग्नि ३२.८(४८ संस्कारों के संदर्भ में हिरण्याङ्घ्रि, हिरण्याक्ष, हिरण्यमित्रा आदि संस्कारों? के नाम), ब्रह्म २.५, २.५९(महाशनि दैत्य का पिता), शिव १.१५.४८(हिरण्य दान से जठराग्नि वृद्धि का कथन), स्कन्द ७.१.१५३(हिरण्येश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, ब्रह्मा द्वारा सरस्वती में उत्पन्न हिरण्य पद्मों पर लिङ्ग स्थापना), लक्ष्मीनारायण १.३०१, १.३११.४५हिरण्यवर्णा, १.३१२.१०५(वसुदान नृप व राध्यासा राज्ञी द्वारा पुरुषोत्तम मास पञ्चमी व्रत से हिरण्याधिपति बनने का वर्णन ), २.२, ३.३३.५५, hiranya हिरण्यक ब्रह्म २.३३(हिरण्यक दानव का प्रियव्रत के अश्वमेध यज्ञ में आगमन, देवों का शमी आदि वृक्षों में प्रवेश करना ), स्कन्द ७.१.१५३, ७.१.२३८, ७.१.३६३, लक्ष्मीनारायण ३.३३.८५(hiranyaka हिरण्यकशिपु अग्नि १९.७(हिरण्यकशिपु के अनुह्राद आदि ४ पुत्रों तथा पौत्रों के नाम), कूर्म १.१६(हिरण्यकशिपु व नृसिंह की कथा का रूप भेद), गर्ग ७.४२, देवीभागवत ४.२२, पद्म १.४१(हिरण्यकशिपु द्वारा ऊर्व ऋषि से और्व माया की प्राप्ति), १.४५(हिरण्यकशिपु द्वारा तप से वर प्राप्ति, नृसिंह द्वारा वध की विस्तृत कथा), २.१०(कश्यप द्वारा हिरण्यकशिपु को देवों के जीतने का कारण सत्य और धर्म बताना, हिरण्यकशिपु द्वारा कश्यप के उपदेश की उपेक्षा कर देवों पर जय हेतु तप), २.२३.४(हिरण्यकशिपु का हिरण्यकश्यप रूप में उल्लेख, हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष की मृत्यु पर दिति द्वारा मेधावी/बल पुत्र की प्राप्ति), ६.२३८(प्रह्लाद की विष्णु भक्ति व हिरण्यकशिपु की महादेvव भक्ति, सर्प, नाग, विष, अग्नि आदि द्वारा प्रह्लाद को नष्ट करनेv का प्रयास, स्तम्भ का ताडन, नृसिंह का प्राकट्य आदि, देवी का प्रकट होकर नृसिंह को शान्त करना), ६.२३८.९(हिरण्यकशिपु- भार्या कल्याणी से प्रह्लाद पुत्र का जन्म), ब्रह्म २.७९(हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात् नृसिंह द्वारा अम्बर्य दैत्य के वध का कथन), ब्रह्माण्ड २.३.५.४(कश्यप के अश्वमेध में अतिरात्र में सौत्य अह में हिरण्यकशिपु की उत्पत्ति, चरित्र का वर्णन, निरुक्ति), भागवत ३.१७(हिरण्यकशिपु के जन्म समय में उत्पात), ७.१, ७.२, ७.३(हिरण्यकशिपु द्वारा तप, ब्रह्मा से वर प्राप्ति), ७.४(हिरण्यकशिपु के वैभव का वर्णन), ७.५(हिरण्यकशिपु द्वारा प्रह्लाद के वध का यत्न), ८.१९.१०(विष्णु का हिरण्यकशिपु के ह्रदय में छिपना), मत्स्य ६, १६१(हिरण्यकशिपु द्वारा तप, ब्रह्मा से वर प्राप्ति, नृसिंह का आगमन, हिरण्यकशिपु की सभा का वर्णन), १६३(नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध), १७५, लिङ्ग १.९५(भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध, शरभ रूप धारी शिव द्वारा नृसिंह का वध, सिंह का नर में रूपान्तरण), वराह २५, वायु ६५, ६७.४९(हिरण्यकशिपु की दिति से उत्पत्ति, हिरण्यकशिपु नाम प्राप्ति का कारण), ६७.७०(हिरण्यकशिपु वंश का वर्णन), विष्णु १.१७(हिरण्यकशिपु का प्रह्लाद से वार्तालाप, प्रह्लाद को नष्ट करनेv का उद्योग), विष्णुधर्मोत्तर १.५४(हिरण्यकशिपु द्वारा तप से वर प्राप्ति, नृसिंह द्वारा वध), १.२३८, शिव २.५.४३.४(हिरण्यकशिपु द्वारा तप से अवध्यता वर की प्राप्ति, नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु के वध का वृत्तान्त), स्कन्द ४.२.९७.२३ (हिरण्यकशिपु द्वारा स्थापित लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.५२(शिप्रा आविर्भाव के संदर्भ में जय - विजय द्वारा सनकादि के ताडन से हिरण्याक्ष - हिरण्यकशिपु, रावण - कुम्भकर्ण आदि बनने की कथा), ५.१.६३.१०३(विष्णु सहस्रनामों में से एक), ५.१.६६.१०(नृसिंह तीर्थ के माहात्म्य के संदर्भ में एक कर तलाघात से हिरण्यकशिपु की मृत्यु होने का कथन), ५.२.१२.२(हिरण्यकशिपु के वक्ष:स्थल से उत्पन्न दैत्यों द्वारा देवों को त्रास, लिङ्ग से उत्पन्न वह्निज्वाला द्वारा दैत्यों को नष्ट करना), ६.८.३४(हिरण्यकशिपु- सुता के त्वष्टा की भार्या बनने और वृत्र पुत्र प्राप्त करनेv का वृत्तान्त), ६.१४९.१८(हिरण्यकशिपु के २ पुत्रों प्रह्लाद व अन्धक का कथन), ७.१.२०.३(अश्वमेध के अतिरात्र के सौत्य अह में उत्पन्न हिरण्यकशिपु द्वारा होता के हिरण्मय आसन पर बैठने का कथन), ७.१.२०.२८(हिरण्यकशिपु का रावण रूप में जन्म), हरिवंश १.३, १.४५(हिरण्यकशिपु द्वारा ऊर्व मुनि से और्व अग्नि को ग्रहण करना), ३.४१(हिरण्यकशिपु द्वारा तप, वर प्राप्ति, सभा का वर्णन, नरसिंह का आगमन), ३.४१.१६(एक पाणि प्रहार से नाश करनेv की शक्ति वालेv से हिरण्यकशिपु के वध का प्रावधान), ३.४२(नृसिंह द्वारा वैभव दर्शन), ३.४४+ (हिरण्यकशिपु का नृसिंह से अस्त्र और माया युद्ध), ३.४६(हिरण्यकशिपु के पैरों की धमक से विश्व का कम्पित होना), ३.४७(नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध), महाभारत शान्ति ३४२.३१(हिरण्यकशिपु द्वारा विश्वरूप को यज्ञ का होता बनाने पर वसिष्ठ से शाप प्राप्ति का कथन), योगवासिष्ठ ५.३०, लक्ष्मीनारायण १.१३३, १.१३५+ (हिरण्यकशिपु का चरित्र : तप, प्रह्लाद को यातनाएं आदि ), कथासरित् ८.७.४८(हिरण्यकशिपु के कपिञ्जल रूप में अवतार का उल्लेख) Esoteric aspect of Hiranyakashipu हिरण्यकूर्च लक्ष्मीनारायण २.५.७७ hiranyakashipu हिरण्यकेश लक्ष्मीनारायण २.७५+ हिरण्यगर्भ ब्रह्माण्ड १.१.३(हिरण्यगर्भ की उत्पत्ति का वर्णन), भविष्य ४.६८.१५, ४.६८.२४, ४.१७६(हिरण्यगर्भ दान विधि), मत्स्य २७५(हिरण्यगर्भ/कलश दान विधि), लिङ्ग २.२९(हिरण्यगर्भ दान विधि), वायु ४.८०(हिरण्यगर्भ रूपी अण्ड), विष्णुधर्मोत्तर १.२(नारायण द्वारा हिरण्यगर्भ की उत्पत्ति), स्कन्द ४.२.७७(वसिष्ठ ब्राह्मण के गुरु हिरण्यगर्भ की केदार तीर्थ में मृत्यु से मुक्ति), ४.२.८४.३७(हिरण्यगर्भ तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.१.२८.७७(, ७.१.१३(कृतयुग में सूर्य का नाम), लक्ष्मीनारायण ३.७१.२८(प्रधान पुरुष से उत्पन्न अहंकार की हिरण्यगर्भ/महाविष्णु संज्ञा ), ३.१२६, hiranyagarbha हिरण्यगुप्त कथासरित् १.४.२६, १.४.६६(वणिक्, उपकोशा पर आसक्ति, उपकोशा द्वारा चरित्र रक्षा की कथा), १.५.७९(योगनन्द - पुत्र, मित्रद्रोह से उन्मत्त होने की कथा ), ९.२.२९९, १०.१.१०, hiranyagupta हिरण्यतेजा लक्ष्मीनारायण १.५५६.४१ हिरण्यदत्त भविष्य ३.२.९, कथासरित् ४.२.१५४, हिरण्यनाभ भविष्य १.२११.११(हिरण्यनाभ द्वारा कौथुमि पुत्र को कुष्ठ निवारणार्थ सूर्य उपासना का आदेश), भागवत ९.१२(विधृति - पुत्र, जैमिनि - शिष्य, योगाचार्य, याज्ञवल्क्य - गुरु ) hiranyanaabha/ hiranyanabha हिरण्यनामा शिव ३.५ हिरण्यबाहु लक्ष्मीनारायण १.५६१ हिरण्यरेता देवीभागवत ८.४(प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्र, कुशद्वीप का स्वामी, रुक्म शुक्र उपनाम), ८.१२.३०(हिरण्यरेता के ७ पुत्रों के नाम), भागवत ५.१.२५(प्रियव्रत व बर्हिष्मती - पुत्र ) hiranyaretaa हिरण्यरोमा अग्नि १९, ब्रह्माण्ड १.२.११.१९(मरीचि - पुत्र, पर्जन्य नाम), मत्स्य ८(उत्तर दिशा के स्वामी), विष्णु १.२२.१४, २.८.८३, हरिवंश १.४.२१(पर्जन्य - पुत्र, उत्तर दिशा के दिक्पाल ) hiranyaromaa हिरण्यवती वामन ६३, ६४.१६, कथासरित् १२.१६.६, १२.२६.१०, हिरण्यवर्ष कथासरित् ९.५.१७२ हिरण्यशृङ्ग मत्स्य १२१.६१(कुबेर - अनुचर, सुरभि वन में वास), हिरण्या पद्म ६.१४०(हिरण्या - साभ्रमती सङ्गम तीर्थ का माहात्म्य), स्कन्द ७.१.२३८(हिरण्या नदी का माहात्म्य), लक्ष्मीनारायण १.२६५.१४(हरि की शक्ति हिरण्या का उल्लेख ) hiranyaa हिरण्याक्ष अग्नि १९, कूर्म १.१६, गरुड १.६.४२(हिरण्याक्ष के पुत्रों के नाम), १.८७.३०(तेजस्वी नामक इन्द्र के शत्रु हिरण्याक्ष का वराह रूपी विष्णु द्वारा वध), गर्ग ७.३२, ७.४२, पद्म १.७५(हिरण्याक्ष का विष्णु से युद्ध, पाताल गमन, वराह रूपी विष्णु द्वारा वध), २.२३, ब्रह्मवैवर्त्त १.९.३६(हिरण्याक्ष के अनपत्य मरण का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१३, भागवत ३.१४(दिति द्वारा गर्भ धारण की कथा), ३.१७(हिरण्याक्ष द्वारा स्वर्ग, समुद्र व पाताल में विजय), ३.१८+ (हिरण्याक्ष का वराह से युद्ध, मरण), ६.७.२, ७.२.१८(रुषाभानु - पति, शकुनि आदि पुत्रों के नाम), मत्स्य ६, १२२, लिङ्ग १.९४, वामन ४८, ८२.४०(चक्र द्वारा कर्तित शिव के ३ भागों में से एक), ९०.२१(हेमकूट पर विष्णु का हिरण्याक्ष नाम), विष्णु १.२१.२(हिरण्याक्ष के पुत्रों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.४३.२(हिरण्याक्ष की महारत्न उपमा), १.५३(वराह रूपी विष्णु द्वारा हिरण्याक्ष का वध), १.१२१, १.१८२(शक्र - पीडक हिरण्याक्ष का नृवराह रूपी विष्णु द्वारा वध), ३.७९, शिव २.५.४२+, स्कन्द ४.२.९७.२९(हिरण्याक्षेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : महाबलप्रद), ५.१.५२, ५.१.६३.१०३(विष्णु सहस्रनामों में से एक), ५.३.१९८.७२(हिरण्याक्ष में देवी के महोत्पला नाम का उल्लेख),६.१२२(महिष रूप धारी शिव द्वारा हिरण्याक्ष का वध), ६.२०४, ६.२२२(हिरण्याक्ष द्वारा ब्रह्मा से प्रेतों की तृप्ति हेतु चतुर्दशी श्राद्ध की प्राप्ति), हरिवंश १.३.७९, ३.३७.१४(हिरण्याक्ष की दैत्यों के राजा पद पर नियुक्ति), ३.३८.१८(हिरण्याक्ष की देह का वर्णन, देवों से युद्ध), ३.३९(वराह द्वारा हिरण्याक्ष का वध), लक्ष्मीनारायण १.१३२, १.१३३, १.१३४(हिरण्याक्ष द्वारा पृथ्वी का हरण, वराह अवतार द्वारा वध ), ३.१६४.४२(वैवस्वत मन्वन्तर में वराह अवतार द्वारा हिरण्याक्ष के निग्रह का कथन), कथासरित् ८.२.१९२, ८.५.१०८, ८.७.४९, १०.९.२१६, १०.९.२३१, hiranyaaksha/ hiranyaksha हिरण्वती वामन ९०.३२(हिरण्वती में विष्णु का रुद्र नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५(हिरण्वती नदी के सुपर्ण वाहन का उल्लेख), हिर्बु भविष्य ३.४.१२(हिर्बु असुर द्वारा देवों को त्रास, रुद्र द्वारा हनन), हीरक लक्ष्मीनारायण २.३७.५९, २.७७.४८(हीरक दान से विषजन्य पाप के नष्ट होने का कथन), २.२१४.७८हीरवती, ३.१६०, ३.१८३.६८हीरुका हुङ्कार गणेश १.८.४०(राजा सोमकान्त के शरीर से नि:सृत पक्षी रूपी द्विजों द्वारा सोमकान्त के मांस का भक्षण करने पर भृगु द्वारा हुंकार से द्विजों को दूर करने का उल्लेख), पद्म ६.७.३७(जालंधर के प्रबोधन पर काव्य द्वारा हुंकार से देवों पर बाणप्रहार), वराह ६९.९(विप्र के हुंकार से राजा के समक्ष पांच कन्याओं के प्राकट्य आदि का वर्णन), स्कन्द १.२.६२.३३(सर्वलिंगेषु हुंकारः स्मशानेषु भयावहः), ५.१.४.२४(ब्रह्मा द्वारा हुङ्कार से रौद्र अग्नि को विभाजित करना, विभाजित अग्नियों के आहार व स्थानों का निर्धारण), ५.२.५४.१४(तापस द्वारा नृप के समक्ष हुंकारों से उत्पन्न चमत्कारों का प्रदर्शन), ५.२.५४.२४, ५.२.८०.४६(वसिष्ठ द्वारा राक्षस बने सौदास नृप का हुंकार से वारण का उल्लेख), ५.३.१४.३२(रुद्र द्वारा ओंहुंफट् उच्चारण से देवी के सौम्य स्वभाव को रौद्र बनाना), ५.३.८३.१०६(गौ के हुंकार में चारों वेदों की स्थिति का उल्लेख), ५.३.१५७.१५(हुङ्कार तीर्थ का माहात्म्य - रेवा नदी का क्रोश मात्र जाना, हुंकार तीर्थ में शुभ-अशुभ कृत्यों का नाश न होना आदि), ७.१.३३९(हुङ्कार कूप का माहात्म्य, तण्डि ऋषि द्वारा कूप में पतित मृग को हुङ्कार द्वारा मुक्त कराना ) humkaara/ hunkaara/ hunkara
हुण्ड पद्म २.१०३+ (विपुला - पति हुण्ड दैत्य द्वारा अशोकसुन्दरी का हरण, नहुष का हरण, नहुष द्वारा वध), २.११८, स्कन्द ४.१.३.४९टीका (हुण्ड शब्दार्थ निरूपण), ४.२.६६.३२(हुण्डन व मुण्डन शिव गणों द्वारा वरणा तट पर विघ्न निवारक लिङ्ग स्थापना ), ४.२.६६.१२८, लक्ष्मीनारायण ३.५२, द्र. विहुण्ड hunda हुत द्र. वंश वसुगण, सर्वहुत हुताशन भविष्य २.१.१७.३(कोटि होम में अग्नि का नाम), २.१.१७.४(प्रायश्चित्त में अग्नि का नाम), वामन ९०.१९(माहिष्मती में विष्णु का हुताशन नाम से वास ) hutaashana/ hutashana हुबक ब्रह्माण्ड ३.४.२५.२८
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